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________________ क्षण है द्वार प्रभु का ठीक-ठीक बोल दो, मुझे मालूम है, मैंने उनसे कहा। और तुम धीरे-धीरे, पहले हजारों कहते थे, फिर अब तुम लाखों कहने लगे कि लाखों पर लात मार दी! पहली तो बात लाखों थे नहीं। दूसरी बात, यह लात मारने का जो भाव है, इसका मतलब है, अभी भी तुम्हारे मन में मालकियत कायम है। अब भी तुम कहते हो कि मेरे थे, लाखों थे, और देखो मैंने छोड़ दिए। छोड़ना तो उसी का हो सकता है जो मेरा हो। जागने में तो सिर्फ इतना ही होता है कि पता चलता है—मेरा कुछ भी नहीं, छोड़ना क्या है! इस भेद को खयाल में ले लेना। जागा हुआ आदमी भागता नहीं, न कुछ छोड़ता है। सिर्फ इतना ही समझ में आ जाता है, मेरा नहीं है। फिर करने को कुछ बचता नहीं, छोड़ने को क्या है! इतना ही समझ में आ गया, पत्नी मेरी नहीं, बेटे मेरे नहीं, सब मान्यता है, ठीक है। इसको कुछ कहने की भी जरूरत नहीं किसी से। इसकी कोई घोषणा करने की भी जरूरत नहीं। इसको कोई छाती पीटकर बताने की भी जरूरत नहीं। यह तो समझ की बात है। ___तुम दो और दो पांच जोड़ रहे थे। फिर तुम मुझे मिल गए, मैंने तुमसे कहा कि सुनो भई, दो और दो पांच नहीं होते, दो और दो चार होते हैं। तुम्हें बात जंची, तो क्या तुम यह कहोगे कि मैंने पुराना हिसाब छोड़ दिया, दो और दो पांच होते हैं, वह मैंने छोड़ दिया? तुम कहोगे कि छोड़ने को तो कुछ था ही नहीं, बात ही गलत थी, बुनियाद ही गलत थी। जब तुम दो और दो पांच कर रहे थे, तब भी पांच थोड़े ही हो रहे थे, सिर्फ तुम कर रहे थे, हो थोड़े ही रहे थे; यथार्थ में तो दो और दो चार ही हैं, चाहे तुम पांच जोड़ो, चाहे सात जोड़ो, तुम्हें जो जोड़ना हो जोड़ते रहो। दो और दो तो चार ही हैं। जिस दिन तुम्हें दिखायी पड़ गया, दो और दो चार हैं, समझ में आ गया, दो और दो चार हो गए-चार थे ही, सिर्फ तुम्हारी भ्रांति मिटी। तुम्हारा कुछ भी नहीं है। ऐसा जिस दिन समझ में आ जाता है, उस दिन जीवन का गणित स्पष्ट हो गया-मेरा कुछ भी नहीं है। छोड़ने को कुछ नहीं है, भागने को कहीं नहीं है, भागकर जाओगे कहां? जहां भी जाओगे वहीं संसार है। गुफा में बैठोगे? वहां संसार है। मैंने सुना, एक आदमी भाग गया था परेशान होकर। संसार में बड़ा उपद्रव है, भाग गया, बैठा जंगल में एक वृक्ष के नीचे ध्यान करता था, एक कौवे ने बीट कर दी! सिर पर बीट गिरी तो बहुत नाराज हुआ, उसने कहा, हद्द हो गयी! हम संसार छोड़कर चले आए, इसी के लिए उपद्रव है, और यहां वृक्ष के नीचे बैठे, कौवे ने बीट कर दी! वह बहुत दुखी हो गया, उसने कहा, इस जीवन में कोई सार नहीं है। ___ वह पास की नदी पर गया, उसने सोचा कि यहीं अर्थी जलाकर मर जाना चाहिए। उसने लकड़ियां इकट्ठी की, एक आदमी बैठा देख रहा था, उसने कहा, भई, क्या कर रहे हो? उसने कहा कि मैं लकड़ियां इकट्ठी कर रहा हूं, जीवन असार है,
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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