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________________ एस धम्मो सनंतनो अब जहां-जहां पद होगा, वहां से भागोगे। मगर तुम्हारी चित्त की दशा नहीं बदली। एक दिन स्त्री के लिए दीवाने थे, अब स्त्री से डरकर भाग रहे हो, हिमालय जा रहे हो। जहां स्त्री न हो, वहां चले जाना है। स्त्री से तुम अब भी बंधे हो, पहले भी बंधे थे-पहले स्त्री की तरफ रुख था, अब स्त्री की तरफ पीठ है; लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है! स्त्री से तुम मुक्त नहीं हो। विपरीत हो गए, लेकिन मुक्त न हुए। एक अति से दूसरी अति पर चले गए, लेकिन मुक्त न हुए। इसलिए अक्सर होता है कि जो लोग बहुत भोजन करते हैं, वे किसी न किसी दिन उरलीकांचन जाकर उपचार करने लगते हैं। उरलीकांचन जाते ही वे लोग हैं, जिन्होंने ज्यादा भोजन कर लिया है। अतिशय भोजन कर लिया, फिर उपवास। ___तुमने यह देखा, जो बहुत समृद्ध धर्म हैं, उन्हीं में उपवास की प्रतिष्ठा है। जैसे, हिंदुस्तान में जैनों में उपवास की प्रतिष्ठा है। मुसलमानों में नहीं है। मुसलमान इतना गरीब है, उपवास की क्या प्रतिष्ठा, वैसे ही उपवास चल रहा है! मुसलमान का तो जब उत्सव का दिन आता है, ईद आती है, तो देखा, नए कपड़े पहनता, हलुवा-पूड़ी तैयार करवाता, इत्र इत्यादि छिड़क लेता–सस्ता ही–महंगा तो वह लाए भी कहां से! यही तो मौका है जब वह अपने कपड़े बदलता है, सालभर तो वह उन्हीं कपड़ों से चलाता रहा है। फिर ईद आएगी, फिर बदल लेगा। यही तो दिन है जिस दिन वह उत्सव मनाता है। तो मुसलमान का धर्म गरीब का धर्म है। स्वभावतः, उपवास की प्रतिष्ठा नहीं है, उत्सव की प्रतिष्ठा है। जैन का धर्म अमीर का धर्म है। स्वभावतः, पूड़ी और हलुवा खा-खाकर तो लोग परेशान हैं, तो पर्युषण-व्रत, तो दस दिन का उपवास। __ खयाल रखना, आदमी विपरीत पर जाता है। जब भारत बहुत अमीर था, तब इस देश में बड़े से बड़े त्यागी हुए; क्योंकि अति। जब देश गरीब हो गया तो त्याग की कहानियां रह गयीं, त्याग का कोई अर्थ न रहा। त्याग के लिए अमीरी चाहिए। देखते हैं, अमरीका में घट रहा है। अमीर घरों के लड़के हैं, हिप्पी हो गए हैं। जिन्हें सब उपलब्ध था, वे सब छोड़कर काबुल और काठमांडू में भटक रहे हैं। जिनके पास सब सुविधाएं थीं, उनको छोड़कर जंगल-जंगल, गांव-गांव! क्या हो गया इन्हें ? एक अति थी, दूसरी अति पर चले आए। भोग की अति आदमी को त्याग की अति पर ले जाती है। और बुद्ध कहते हैं, मध्य में मार्ग है, अति पर मत जाना। नहीं तो तुम घड़ी के पेंडुलम की तरह एक कोने से दूसरे कोने पर भटकते रहोगे। मध्य में मार्ग है। तुमने देखा, जब घड़ी का पेंडुलम बाएं से दाएं तरफ जाता है, तो वह दाएं तरफ जा रहा है, लेकिन बाएं तरफ फिर जाने की ऊर्जा इकट्ठी कर रहा है, मोमेंटम इकट्ठा कर रहा है। वह तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता ऊपर से, पेंडुलम तो जा रहा है दायीं तरफ तो तुम सोचते हो, दायीं तरफ जा रहा है लेकिन दायीं तरफ जाते समय बायीं तरफ जाने की ऊर्जा इकट्ठी कर रहा है। फिर बायीं तरफ जाएगा। जब बायीं
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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