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________________ क्षण है द्वार प्रभु का और समझा दें। फाचांग ने आंख खोली, उसी समय झोपड़ी के छप्पर पर एक गिलहरी दौड़ी और उसने ची-ची, किट-किट की, फाचांग बोला, यही-यही, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। इट इज जस्ट दिस, एंड नथिंग एल्स। मुस्कुराया, आंखें बंद कर ली और मर गया। ___ गिलहरी की ची-ची, किट-किट, और उसने कहा-यही।...यह कोयल को सुनते हो? कोयल इसी क्षण में कुहू कुहू कर रही है। एक क्षण पहले इसकी योजना नहीं बनायी थी उसने, और एक क्षण बाद इसकी याद भी नहीं रखेगी। ऐसा नहीं है कि उसके पास कोई ब्लूप्रिंट तैयार है कि कब करना! कि आठ बजकर पच्चीस मिनिट पर कुहू कुहू करना! और जब एक दफे कर ली कुहू-कुहू तो फिर पीछे लौटकर भी नहीं देखती कि कुहू-कुहू की। जो हो गया, हो गया। ऐसे निसर्ग में जीने का नाम ही संन्यास है। संन्यास कोई चीज थोड़े ही है जो तुम ले लोगे, संन्यास कोई ढंग थोड़े ही है, संन्यास कोई व्यवस्था थोड़े ही है, संन्यास बोध है; जीवन को पल-पल जीने की जो चेतना है, जो जागरूकता है, वही संन्यास है। दूसरा प्रश्न : भगवान बुद्ध का मज्झिम निकाय, मध्य मार्ग क्या है, हमें समझाने की अनुकंपा करें। | यह प्रश्न महत्वपूर्ण है। बुद्ध की देशना को समझने के लिए अति आधारभूत है। बुद्ध का उपदेश इस एक छोटे से शब्द में समाहित है—मज्झिम निकाय। मज्झिम निकाय का अर्थ होता है, मध्य मार्ग, द मिडिल वे, बीच का रास्ता। . शब्द तो सीधे-साधे हैं, पर इनकी निष्पत्ति बहुत गहरी है। इनमें बहुत कुछ समाहित है। यही वह क्रांति है जो बुद्ध जगत में लाए-मध्य मार्ग। समझने की कोशिश करो। मनुष्य का मन अतियों में डोलता है। मन अतियों के साथ बड़ा कुशल है। तुम धन के पीछे पागल हो, पद के पीछे पागल हो, बस तुम्हारे भीतर एक ही धुन चलती है, दिल्ली चलो। अगर तुम पद के पीछे या धन के पीछे पागल हो, तो किसी न किसी दिन ऐसा होगा, थक जाओगे धन की दौड़ से, पद की दौड़ से, तब तुम इसके विपरीत चलने लगोगे। तुम कहोगे, धन को छूना पाप है। जहां धन होगा, वहां से भागने लगोगे। पहले धन के लिए भागते थे, अब जहां धन होगा वहां से भागने लगोगे। पहले पद के दीवाने थे, अब भी दीवानगी वही है, सिर्फ दिशा बदल गयी। 43
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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