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________________ एस धम्मो सनंतनो सुनने की याद ही नहीं रही, अब वह सौ डालर की सोचने लगा। फिर उसने सोचा कि सौ डालर जरा ज्यादा होते हैं, पचास से ही काम चल जाएगा। फिर और दस मिनिट बीते, फिर वह सोचने लगा, पचास डालर भी, पचास डालर के लायक बात नहीं जंचती, पच्चीस से चल जाएगा। ऐसे सरकता रहा, सरकता रहा। फिर तो एक डालर पर आ गया। जब आखिरी प्रवचन होने के करीब था तो एक डालर पर आ गया। फिर उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि तब मुझे खयाल आया और तब मैं एकदम निकल भागा चर्च से। क्योंकि मुझे डर लगा कि जब चंदा मांगने वाला व्यक्ति थाली लेकर घूमेगा, तो अब मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि मैं थाली में से कुछ लेकर अपनी जेब में न रख लूं। सौ देने चला था! इस डर से जल्दी से चर्च के बाहर निकल आया कि कहीं थाली में से कुछ उठाकर अपनी जेब में न रख लूं। __तुम सोचते हो, कल संन्यास लोगे! कल तक तुम्हारी संसार की आदतें और मजबूत हो जाएंगी। कल तक तुम और अपने बंधनों को पानी से सींच दोगे। चौबीस घंटे और बीत जाएंगे! चौबीस घंटे तुम और पागल रह चुके होओगे। चौबीस घंटे तुमने और जाल फैला लिए होंगे, और वासनाएं, और आकांक्षाएं और उपद्रव बना लिए होंगे। अभी नहीं छूट सकते हो तो कल कैसे छूटोगे? परसों तो और मुश्किल हो जाएगा। बात रोज-रोज मुश्किल होती जाएगी। ऐसे ही बहुत देर हो चुकी है। इसलिए मैं तुमसे सिर्फ इतना ही कहूंगा, जो भी करना हो, उसे क्षण में कर लेना। क्योंकि वर्तमान की ही केवल सत्ता है, वही है। यह शाश्वत अब, यह इटर्नल नाउ, बस यही काल का स्वभाव है। ___ मैंने सुनी है एक अदभुत कहानी। फाचांग नाम का एक अदभुत सदगुरु हुआ। उसका इतना ही उपदेश था-अभी, यहीं। बस दो शब्दों का ही उपदेश था। सम्राट ने उसे बुलाया था जापान के प्रवचन करने, तो वह मंच पर खड़ा हुआ-सम्राट बैठा, उसके दरबारी बैठे, बड़ा आयोजन किया था, फाचांग बड़ा प्रसिद्ध गुरु था-वह खड़ा हआ, उसने जोर से टेबल पीटी और कहा, अभी, यहीं। नीचे उतरा और वापस चला गया। सम्राट तो बहुत चौंका। उसने अपने वजीरों से पूछा, यह क्या मामला है? यह कैसा प्रवचन ? यह टेबल पीटना और कहना, अभी और यहीं। यह बात क्या है? __उसके वजीरों ने कहा कि महाराज, इतना ही उनका उपदेश है। और इसमें उन्होंने सब कह दिया जो समस्त कालों में बुद्धों ने कहा है। शुभ करना हो तो अभी और यहीं। फिर फाचांग मरता था, उसके मरने के समय की घटना है। बिस्तर पर मरणासन्न पड़ा है। अंतिम घड़ियां हैं, शिष्य इकट्ठे हुए हैं। शिष्यों ने सोचा कि जिंदगीभर यह अभी और यहीं कहता रहा, अब तो मौत आ गयी, पूछ लें, शायद कुछ और कह दे। तो किसी ने पूछा, वर्तमान में जागरूक होने के सिद्धांत को आप हमें एक बार
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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