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________________ क्षण है द्वार प्रभु का एक बिजली की तरह कौंध गयी होगी उसके भीतर। ऐसा नहीं कि उसने ऐसा सोचा होगा, ऐसी तर्कसरणी फैलायी होगी। नहीं, जैसे अंधेरे में बिजली कौंध जाए और... सब दिखायी पड़ जाए, क्षण में, एक क्षण में सब साफ हो जाए। उसने गुरु के चरणों में सिर रखा और कहा - पूछते हैं, कब ? करने का क्ष तो अभी है। तो अभी हो गया ! कहा - पूछते हैं, कब ? आशीर्वाद दें, अभी हो गया। और उस दिन से सदाशिव मौन हो गया, फिर जीवनभर नहीं बोला। बोला ही नहीं ! बात ही खतम हो गयी ! उस दिन से सदाशिव मुनि हो गया। उस दिन संन्यस्त हो गया। गुरु के चरणों में जो झुका सो झुका। वहीं चरणों में वाणी छोड़ दी । तर्क छोड़ दिए, ज्ञान छोड़ दिया, सब छोड़ दिया। अपूर्व आनंद में मस्त रहने लगा । औरों ने तो समझा कि पागल हो गया। पहले इतना बोलता था, इतना समझाता था, इतना तर्क-विवाद करता था। गुरु के शिष्यों में सबसे ज्यादा प्रखर और तेजस्वी वही था। लोग सोचने लगे, पागल हो गया ? इसे क्या हो गया बेचारे को ? गुरु के पास खबरें आने लगीं, लोग कहते कि क्या हो गया सदाशिव को ? मालूम होता है, सदाशिव पागल हो गया है। और गुरु ने कहा, काश, ऐसे ही और भी पागल होते! सदाशिव मुनि हो गया है, पागल नहीं। पागल था, विक्षिप्त था, अब विमुक्त हो गया है। सदाशिव संन्यस्त हो गया है। तुम पूछते हो, 'संन्यास कब लें ?” लेना हो तो - अब । न लेना हो तो - कब । कब तो आड़ है। कब तो तरकीब है। कब तो सोचने का एक ढंग है, उपाय है और बड़ा चालबाज उपाय है। कब का मतलब यह होता है कि तुम लेना नहीं चाहते और अपने को यह भी समझाना चाहते हो कि मैं लेना चाहता हूं। घर में आग लगी हो, तो तुम पूछते हो, कब बाहर निकलूं ? घर में आग लगी हो तो तुम छलांग लगाकर बाहर निकल जाते हो । सांप रास्ते पर पड़ जाए, फन उठाए खड़ा हो, तो तुम पूछते नहीं कि कब छलांग लगाकर निकलूं, तुम छलांग लगाकर निकल जाते हो । अगर तुम्हें जीवन के सत्य दिखायी पड़ जाएं, तो तुम कब तो पूछोगे ही नहीं । क्या है तुम्हारे जीवन में जिसके लिए तुम कल के लिए रुको ? क्या है जो अटका है ? ऐसा मूल्यवान कुछ भी तो नहीं । भ्रांति और भ्रांति के अतिरिक्त तुम्हारे हाथों में क्या है ! मुट्ठी खाली है, तुम खाली हो । कब मन की पुरानी तरकीब है। जब मन को कोई बात टालनी होती है, तो वह कहता है, कल कर लेंगे। मार्क ट्वेन ने एक संस्मरण लिखा है कि वह एक चर्च में प्रवचन सुनने गया । जब वह प्रवचन सुन रहा था तो बड़ा प्रभावित हुआ। कोई पांच-सात - दस मिनिट ही बीते थे, वह जो चर्च में बोल रहा था धर्मगुरु बड़ा प्रभावशाली था, मार्क ट्वेन सोचा कि आज सौ डालर दान कर दूंगा। फिर दस मिनिट और बीते, अब तो उसे 41
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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