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क्षण है द्वार प्रभु का
हो जाओ, तब तक तुम उसे न पा सकोगे। ___ भविष्य में नहीं है परमात्मा, भविष्य में तो तुम्हारी वासनाएं हैं। वासनाओं की दुर्गंध में परमात्मा का मंदिर कैसे बनेगा? भविष्य है ही कहां सिवाय तुम्हारी आकांक्षा के? अतीत वह, जो नहीं हो गया। भविष्य वह, जो अभी हुआ नहीं। इन दोनों के मध्य में है, अतीत और भविष्य के मध्य में है, वह जो छोटा सा द्वार है वर्तमान का, वहीं है। वहीं से सरकना होगा। संकरा है द्वार, होश न रखा तो चूक जाओगे। अति जागरूकता रही तो ही प्रवेश कर सकोगे।
और तुम पूछते हो, 'संन्यास लेना चाहता हूं, कब लूं?' कब पूछो ही मत। तुमसे एक छोटी कहानी कहूं
दक्षिण भारत में एक अपूर्व संन्यासी हुआ। उसका नाम था, सदाशिव स्वामी। अपने गुरु के घर था, युवा था, तब संन्यस्त न हुआ था। तब तो गुरु के पास ज्ञान सीखने गया था। अक्सर ऐसा होता है, जाते हो ज्ञान सीखने, संन्यास सीखकर लौट आते हो। गुरु का अर्थ ही यही है, कि तुम गए किसी कारण से और गुरु ने कुछ
और तुम्हें पकड़ा दिया। लोग जाते हैं प्रश्न हल करने और गुरु उन्हें ही हल कर देता है। लोग जाते हैं कि थोड़ी जानकारी बढ़ाकर लौट आएंगे, थोड़े और पंडित होकर लौट आएंगे, और.गुरु की कीमिया से गुजरते वक्त वे वही नहीं रह जाते जो आए थे, कुछ नए होकर लौट जाते हैं। ___संन्यास का इतना ही अर्थ है-पुनर्जन्म, नया जन्म। मर गया पुराना और तुम अचानक नए हो गए, पुराने से श्रृंखला टूट गयी। न तुम्हारा पुराना नाम रहा, न तुम्हारा पुराना घर रहा, न पुराना तुम्हारा ठिकाना रहा, पता रहा। तुमने फिर अ, ब, स, से जिंदगी शुरू की। तुम्हें एक बात समझ में आ गयी कि अब तक जिस ढंग
और शैली से जीए, उससे कहीं पहुंचे नहीं, अब फिर से शुरू करें। तुमने नया मकान बनाना शुरू किया।
संन्यास पुराने मकान में लीपा-पोती नहीं है, संन्यास पुराने मकान का जीर्णोद्धार नहीं है, संन्यास तो नए मकान की बुनियाद है और बुनियाद से ही शुरू करना होता है। और ध्यान रखना, पुराने मकान को तुम लाख लीपा-पोती करो, टेके लगाओ, सहारे लगाओ, पुराना मकान पुराना ही रहता है। पलस्तर बदल दिए, फर्नीचर बदल दिया, सब टीमटाम ऊपर की होगी-मकान पुराना है और पुराना ही रहेगा। नया मकान बनाना हो तो नया ही बनाना होता है। ___ तो गया था सदाशिव-तब वह स्वामी नहीं था, युवा था, ज्ञान की तलाश में था, जिज्ञासु था, दार्शनिक होने की धुन थी उसे—तो गुरु के पास रहा, खूब सीखा। असली बात न सीखी। सब व्यर्थ सीख लिया। गुरु जो कहता था, उसके शब्द सीख लिए। गुरु को जो-जो मालूम था, वह सब उसने कंठस्थ कर लिया। वह गुरु को धोखा दे रहा था और खुद भी धोखा खा रहा था। क्योंकि गुरु जो कहता है, उस पर