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एस धम्मो सनंतनो
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क्योंकि कौन जाने कल हो न हो । कल का इतना भरोसा नहीं । और अगर बुरा न भी हुआ तो अच्छा ही है, कल पर टाला था, टल गया। लेकिन भला अगर न हुआ, तो जीवन की संपदा से वंचित रह जाओगे ।
और संन्यास जीवन की गहनतम बात है । तुम्हें संन्यास का अर्थ भी समझ में नहीं आया होगा, इसलिए पूछते हो, कब ? संन्यास का अर्थ ही होता है, वर्तमान में जीने की कला। अभी और यहीं जीने की कला। यह क्षण बिना जीआ न निकल जाए, इतना ही संन्यास है। इस क्षण को हम किसी और क्षण के लिए निछावर न करें, यह क्षण किसी और क्षण की बलि वेदी पर न चढ़ाया जाए, इस क्षण को हम पूरा का पूरा समग्र भाव से जी लें। इस क्षण से ही द्वार खुलता परमात्मा का ।
न तो भविष्य में परमात्मा है, न अतीत में । अतीत में तो राख है, स्मृतियां हैं, पदचिह्न हैं समय की रेत पर छूटे हुए; और भविष्य में कल्पनाएं हैं, आकांक्षाएं हैं, वासनाएं हैं। न तो परमात्मा अतीत में हो सकता है, क्योंकि परमात्मा इतना मुर्दा नहीं है कि अतीत में हो। जो बीत गया कल, उसमें परमात्मा नहीं है । वह कल परमात्मा से छूट गया, अलग हो गया; वह सूख गया पत्ता, वृक्ष से गिर गया, अब उसका वृक्ष से कोई संबंध नहीं है। अब उस सूखे पत्ते में वृक्ष की रसधार मत खोजना। रसधार ही होती तो वह टूटता नहीं, सूखता नहीं, गिरता नहीं । अतीत का अर्थ है, सूखे पत्ते, जो गिर गए। अब उनमें जीवन नहीं रहा। उन्होंने जीवन को छोड़ दिया, ऐसा नहीं, जीवन ने उन्हें छोड़ दिया । जीवन उनसे सरक गया । जीवन नए पत्तों में आ गया। जो बीत गए दिन, वे मृत हो गए।
अतीत में परमात्मा को मत खोजना। बहुत से लोग अतीत में खोजते हैं। जब उन्हें परमात्मा की सुध आती है तो वेद, कुरान, बाइबिल में खोजते हैं। वहां न मिलेगा। अभी खोजना होगा, यहीं खोजना होगा, इसी क्षण का पर्दा उठाना होगा। और कुछ लोग हैं जो भविष्य में खोजते हैं, कहते हैं, कल खोजेंगे, परसों खोजेंगे; बूढ़े हो जाएंगे तब खोजेंगे। अभी तो जीवन है, अभी तो जवान हैं, अभी तो बहुत कुछ और करना है । या होगा, तो देखेंगे फिर कभी। अभी और जरूरी बातें द्वार पर खड़ी हैं।
परमात्मा, अगर कभी कोई सोचता भी है उसके लिए, तो क्यू में अंत में खड़ा कर देता है। क्यू का अंत कभी आता नहीं, परमात्मा वहीं खड़ा खड़ा थक जाता है। तुम्हारा क्यू बढ़ता जाता है। संसार में हजार काम करने हैं । परमात्मा हजार के बाद है। हर कभी चुकते नहीं, एक काम से दस काम निकलते हैं, दस काम से फिर सौ काम निकलते हैं- पत्ते में पत्ते, शाखाओं में प्रशाखाएं और संसार फैलता चला जाता है। और परमात्मा जहां खड़ा है वहीं खड़ा रहता है । और और दूर होता जाता है। बच्चों के परमात्मा ज्यादा पास है, बूढ़ों से और भी ज्यादा दूर हो जाता है। इसलिए तो समस्त ज्ञानियों ने कहा है, जब तक तुम बालक की भांति निर्दोष न
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