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________________ धर्म तुम हो वापस लौटेगा, तो इसकी हालत दो महीने पहले से भी ज्यादा बुरी होगी। जब उस हालत में इसने पचास रुपए चुराए थे, तो दो महीने बाद यह सौ रुपए चुराने की स्थिति में आ गया। यह तो अदालत ने कुछ काम नहीं किया! यह तो बात और गलत हो गयी। तो न्याय तो छोटा सिद्धांत है। न्याय ही नहीं हो रहा है। होनी तो करुणा चाहिए, करुणा तो बहुत बड़ी बात है। करुणा का तो मतलब है, हम सारा संदर्भ सोचें। क्योंकि जो बात एक संदर्भ में ठीक है, दूसरे में गलत हो सकती है। संदर्भ तो सोचो, किसके चुरा लिए हैं? किससे ले लिए, किसलिए लिए, किस अवस्था में लिए? उस अवस्था में न्यायाधीश अगर होता, तो वह भी ये पचास रुपए चुराता या नहीं चुराता? पुरानी एक कहानी है। एक युवक ने अपने गुरु को कहा कि मैं ध्यान में उतरना चाहता हूं। और ऐसे ध्यान में उतरना चाहता हूं जहां कोई चीज शेष न रह जाए, बस ब्रह्म ही शेष हो। गुरु ने कहा, तू ध्यान कर। उसके लिए सब सुविधा जुटा दी। वह शांत सारी सुविधाओं के रहते ध्यान करने लगा। कुछ दिन बाद वह उदघोष करने लगा उपनिषद के महावाक्य का-अहं ब्रह्मास्मि! और शिष्यों ने कहा कि वह ती ज्ञान को उपलब्ध हो गया, मालूम होता है। अब तो वह जब भी बात करता है तो अहं ब्रह्मास्मि, इसकी ही बात करता है। बैठे-बैठे ध्यान में अहं ब्रह्मास्मि का उच्चार होने लगता है। गुरु ने उसे बुलाया, उसकी तरफ देखा और कहा, ठीक! अब तू इक्कीस दिन भोजन बंद कर दे। इक्कीस दिन तो दूर, पांच-सात दिन के बाद ही अहं ब्रह्मास्मि का उदघोष बंद हो गया। दो सप्ताह बीतते-बीतते तो वह गाली-गलौज बकने लगा। यह क्या बदतमीज़ी है! मुझे भूखा मारा जा रहा है! तीन सप्ताह होते-होते तो उसकी हालत विक्षिप्त की हो गयी। गुरु ने उसे बुलाया और कहा, क्या विचार है-अहं ब्रह्मास्मि? उसने कहा, छोड़ो जी बकवास, भोजन! अन्नं ब्रह्म! बस इन तीन सप्ताह तो सिर्फ एक ही बात याद रही कि अन्न ही ब्रह्म है। और कोई ब्रह्मास्मि वगैरह सब व्यर्थ की बातें हैं। तो गुरु ने कहा, अब तू ठीक समझा। इतना सस्ता नहीं है! न्यायाधीश भी तो अपने को जरा रखकर देखे उस परिस्थिति में, जहां एक आदमी ने चोरी की! उस परिस्थिति में रखकर सोचे जहां उसे चोरी के लिए मजबूर होना पड़ा। तो करुणा होगी। __ लेकिन करुणा तो बहुत दूर है, न्याय ही नहीं हो रहा है। उन भिक्षुओं ने देखा कि न्याय कैसे संभव है? और भगवान, आप तो कहते हैं कि करुणा होनी चाहिए जगत में, यहां न्याय ही नहीं हो रहा है! न्याय तो बिलकुल गणित की बात है, उसमें हृदय की कोई गुंजाइश नहीं है। करुणा तो हृदय की बात है, वह तो गणित से बहुत ऊपर है। 23
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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