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________________ एस धम्मो सनंतनों को बिठा देते हो जबर्दस्ती, वह परेशान हो जाता है, उसकी प्रसन्नता छिन जाती है। ऐसा ही कर्मठ व्यक्ति है । और दुनिया में कर्मठ व्यक्तियों का बाहुल्य है । शायद नब्बे प्रतिशत लोग कर्मठ हैं। नब्बे प्रतिशत लोगों को आलस्य का मार्ग नहीं जमेगा। मगर वे जो दस प्रतिशत लोग हैं, उनको कर्म का मार्ग नहीं जमेगा। और मेरा कहना है, किसी को किसी दूसरे के मार्ग के जमने की जरूरत ही नहीं है। यह छोटी सी कहानी सुनो एक सूफी दरवेश टाइगरिस नदी में गिर पड़ा। किनारे से एक आदमी ने उसे देखा कि वह तैर नहीं सकता है। उसने उससे पूछा कि क्या वह किसी आदमी को बुलाए जो उसे बचाकर किनारे ला दे ? उस दरवेश ने कहा, नहीं। फिर उस आदमी ने पूछा, तब क्या वह डूब जाना चाहता है? उस दरवेश ने कहा, नहीं। इस पर उस आदमी ने पूछा, आखिर वह चाहता क्या है? दरवेश ने जवाब दिया, जो परमात्मा चाहता है। उसे स्वयं चाहने से मतलब ही क्या है ! यह आदमी परम आलसी रहा होगा, जिसको अष्टावक्र कहते हैं, आलस्यशिरोमणि। परम आलसी रहा होगा। यह कहता है, मुझे चाहने से मतलब ही क्या है! उसे बचाना होगा तो बचा लेगा, उसे ले जाना होगा तो ले जाएगा । उसकी मर्जी आए, उसकी मर्जी चले । न अपनी मर्जी आए, न अपनी मर्जी चले, बात ही क्या है करने की ! वह तैर भी नहीं रहा है, वह नदी में गिर पड़ा है और वह प्रतीक्षा कर रहा है- परमात्मा जो करे ! जरा इस साधक की दृष्टि समझोगे । जरा इसका भाव समझोगे । इसका भाव बड़ा अदभुत है। यह कह रहा है, उसे बचाना होगा तो बचा लेगा । और नहीं उसे बचाना है, तो मेरे बचाए - बचाए भी कैसे बच पाऊंगा! इसलिए मैं व्यर्थ बीच में बाधा क्यों डालूं? जैसी उसकी मर्जी! उसकी मर्जी पूरी हो ! यह कर्मशून्यता की भावदशा है। इसको अष्टावक्र ने बड़ा ऊंचा माना है। इसको परम अवस्था कहा है। कहा है, कर्ता तो परमात्मा है। हम कर्ता बन जाते हैं, इससे सिर्फ अहंकार पैदा होता है। लेकिन अष्टावक्र की बात थोड़े से ही लोगों के काम की है, जो अकर्ता बनने में समर्थ हैं। अब फर्क समझ लेना कृष्ण और अष्टावक्र की गीता का । कृष्ण की गीता उन लोगों के लिए है जो कर्मठ हैं। कृष्ण की गीता ठीक उलटी है अष्टावक्र की गीता से । 'कृष्ण की गीता कहती है, कर्म करो और कर्म में आसक्ति मत रखो, फलाकांक्षा मत रखो, लेकिन कर्म करो। अर्जुन भागना चाहता था। अगर अर्जुन को अष्टावक्र मिल गये होते तो अष्टावक्र कहते, बिलकुल ठीक, प्यारे, जल्दी भाग ! परम आलसी हो जा करना क्या है ? करना - धरना उसका काम है, हम बीच में पड़ें क्यों ? मगर अर्जुन भागना चाहता था और कृष्ण ने उसे खींचा और कहा, भाग मत! उसे अटकाया। लेकिन कृष्ण ने ठीक किया, क्योंकि अर्जुन मूलतः कर्मठ व्यक्ति था, क्षत्रिय 302
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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