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________________ सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का निकालना पड़ा, दूसरों को निकालना पड़ा, वे अपने सोये ही रहे। शीला तो निश्चित आलसी है। अभी भी सो रही होगी। ज्यादातर सोती है, जब मैं बोलता हूं तब वह सोती । मगर उसको मैंने आज्ञा दी है कि सो सकती है। चलो सोये-सोये सही, तरंगें तो पड़ेंगी, कुछ हवा से तो मिलेगा, कुछ सुगंध तो मेरी पहुंचेगी, सोये- सोये सही ! तो पहली बात खयाल रखने की जरूरत है कि अगर तुम सच में ही आलसी हो तो आलस्य से भी मार्ग है। मगर अगर सच में नहीं हो तो मार्ग नहीं है। तुम जो सच में हो, वहीं से मार्ग है, क्योंकि सच से सच का मार्ग है। इसको खयाल में रख ना। अगर तुम कर्मठ व्यक्ति हो तो आलस्य तो तुम्हारे लिए मार्ग नहीं होगा । तब तुम्हें कुछ कर्म का ही मार्ग चुनना पड़ेगा। कर्म के मार्ग का अर्थ होता है, तुम कर्म को ही अर्पित कर सकोगे परमात्मा को; तुम कुछ करोगे, तो ही अर्पित कर सकोगे। तुम बिना किये तो परमात्मा से दूर पड़ते जाओगे। तुम करके ही प्रसन्न होओगे । तुम्हारी प्रसन्नता ही तो अर्पित करोगे ! अगर कर्मठ व्यक्ति को बिठा दो एक कोने में, जबर्दस्ती आलस्य का आरोपण कर दो उस पर, तो वह बेचैन हो जाएगा, उदास हो जाएगा। . तुमने देखा न, छोटे बच्चों को अगर जबर्दस्ती बिठा दो एक कोने में कि चलो शांत बैठो, पिताजी पूजा कर रहे हैं, कि माताजी प्रार्थना कर रही हैं, शांत बैठो। तो बच्चा बैठता भी है तो भी कसमसाता है, निकल भागना चाहता है बाहर, किसी तरह ऊधम करना चाहता है, कुछ कर गुजरे; उदास होने लगता है। यह दुनिया इतनी उदास है, इसका एक मौलिक कारण यह है कि हम बच्चों को स्कूलों में पांच-छह घंटे बिठा रखते हैं। उनके जीवन के सारे रस को हम सुखा sed हैं। और जब तक रस नहीं सूख जाता है तब तक हम उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर नहीं निकलने देते। बीस-पच्चीस साल - एक तिहाई उम्र, पच्चीस साल में व्यक्ति एम. ए. होकर बाहर निकलेगा विश्वविद्यालय से, एक तिहाई उम्रजीवन उत्सव का था, नाच का था, गीत का था, दौड़ने का था, कूदने का था, का था, तब उनको बिठा दिया स्कूलों में । स्कूल बिलकुल कारागृह जैसे हैं ! - -जब कि तैरने तुमने देखा न जेल भी लाल रंग से रंगे जाते हैं और स्कूल भी । वे जेल ही हैं। और छह-छह, सात-सात घंटे विद्यार्थी बैठे हैं, और मास्टर डंडा लिये खड़ा है, हिलने-डुलने नहीं देता, ध्यान लगाओ, उठो-बैठो नहीं - पच्चीस साल ! मार डालते तुम जीवन की ऊर्जा को । फिर निकलते हैं मुर्दा लोग, फिर इन मुर्दा लोगों से समाज भर जाता है । और ये मुर्दा लोग अपने बच्चों को भेजने लगते हैं, क्योंकि जब ये मुर्दा हो गये तो ये फिर किसी को क्षमा नहीं कर सकते, ये भी मुर्दा करके रहेंगे। दुनिया में जब तक नये ढंग के स्कूल न होंगे तब तक दुनिया में प्रसन्नता नहीं हो सकती। अभी तो व्यवस्था बहुत खराब है। अभी तो व्यवस्था रुग्ण है। छोटे बच्चे 301
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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