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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारा कोई आग्रह नहीं है कि कोई दे ही, तुम्हारा कोई बल नहीं है, तम कोई स्वामी नहीं हो कि जिसने न दिया तो नाराज हो गए। देना किसी का कर्तव्य नहीं है। कोई प्रेम से दे देगा, ठीक है, तो धन्यवाद दे देना; जो न दे, उसे भी धन्यवाद दे देना। भिक्षु में एक खूबी है, लेकिन वह भी खराब हो गयी। आदमी के हाथ में जो भी शब्द पड़ जाते हैं, खराब हो जाते हैं। समझना। यह भिक्षु शब्द बड़ा प्यारा था, उतना ही प्यारा था जितना कि स्वामी शब्द था। लेकिन तब क्या हुआ? अहंकार को मिटाने की तो बात धीरे-धीरे भूल गयी और भिक्षु शोषक हो गया। वह पर-निर्भर हो गया। लोग इसीलिए बौद्ध भिक्षु होने लगे कि न कमाना, न धमाना! श्रम की कोई जरूरत न रही, शोषण की सुविधा मिल गयी। बड़ा समूह समाज के ऊपर जीने लगा, शोषक होकर जीने लगा। स्वामी खराब हो गया था, भिक्षु भी खराब हो गया। ___ इसलिए हमें बदलते रहना होता है। फिर नए शब्द गढ़ने होते हैं, या पुराने शब्दों को फिर नया अर्थ देना होता है। मैंने फिर स्वामी शब्द का प्रयोग शुरू किया है। क्योंकि बौद्ध का भिक्षु पर-निर्भर हो गया। और उन दिनों तो संपन्न दुनिया थी, कोई अड़चन न थी। गांव में आसानी से दस-पचास लोग भिक्षु हो जाएं तो पल सकते थे। उन दिनों ऐसी दुनिया थी कि एक आदमी कमाता था और घर में बीस आदमी खाते थे। कोई अड़चन न थी, एक और आदमी भीख मांग ले गया तो कोई अड़चन न थी। अब वैसी दुनिया भी न रही। अब तो बीस आदमी कमाएं तो भी सबका पेट नहीं भर पाता। तब एक कमाता था, बीस का पेट भर जाता था, देना बहुत सुगम था। अब देना बहुत कठिन है। और अब भिक्षु बोझ हैं। इसलिए मैंने स्वामी की एक नयी धारणा को जन्म दिया है। स्वामी तो तुम बनना, लेकिन हिंद जैसे स्वामी नहीं। और तुम किसी पर निर्भर मत हो जाना। स्वामी तो तुम बनना, लेकिन जैसे हो वैसे ही रहे बनना। दुकान करते हो तो दुकान जारी रहे, दफ्तर जाते हो तो दफ्तर जारी रहे, मजदूरी करते हो तो मजदूरी जारी रहे। तुम्हारा आर्थिक भार समाज पर किसी तरह से न पड़े। __स्वामी मालिक हो गया था, हिंदुओं का। मालिक होकर भी खतरा है। क्योंकि जिनके तुम मालिक हो जाते हो उन पर निर्भर हो जाते हो। फिर उनकी तरफ तुम्हें ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि तुम्हारी कुर्सी वे ही सम्हाले हुए हैं, अगर वे नाराज हो जाएं तो कुर्सी गिर जाएगी। तो वे जैसा कहते हैं, वैसा ही मानकर चलना पड़ता है। भिक्षु भी निर्भर हो गया। जिनसे तुम भोजन खाते हो, जिनसे तुम भोजन लेते हो, उनके विपरीत नहीं जा सकते। तो बुद्ध की बड़ी जो क्रांति थी, वह भिक्षुओं के कारण समाप्त हो गयी। भिक्षु क्रांतिकारी नहीं हो सकता है। क्रांतिकारी तो वही हो सकता है जो अपने पर निर्भर है। पर-निर्भर क्रांतिकारी नहीं हो सकता। अगर तुम किसी पर निर्भर हो तो क्रांति मर जाएगी। इसलिए फिर मैं संन्यासी के लिए स्वामी शब्द लौटाया हूं, क्योंकि स्वामी शब्द
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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