SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म तुम हो जहां हर चीज गणित से चलती है, तर्क से चलती, खोपड़ी से चलती। जहां करुणा के कोई फूल नहीं खिलते। बुद्धि बड़ी कठोर है, गणित में कोई दया नहीं होती। गणित जहरीला है। और जहां तर्क से ही सब चलने लगता है, वहां हम परमात्मा के बिलकुल विपरीत हो जाते हैं। क्योंकि परमात्मा के जीवन की जो धारा है, वह भाव से बहती है। हृदय में उसकी तरंगें उठतीं। तो श्रावस्ती थी राजधानी। बहुत बार यह सवाल भी उठा है बौद्धों को कि बुद्ध बहुत बार श्रावस्ती गए; इतनी बार श्रावस्ती क्यों गए? इन्हीं पागलों की वजह से गए होंगे। चिकित्सक वहीं जाता है न, जहां ज्यादा बीमार हों। चिकित्सक की वहां जरूरत भी ज्यादा होती है। श्रावस्ती नगर, कुछ भिक्षु भिक्षाटन करके भगवान के पास वापस लौट रहे थे। बुद्ध ने संन्यास में एक क्रांति घटित की। बुद्ध के पहले संन्यासी को कहते थे, स्वामी। स्वामी शब्द प्यारा है, उसका अर्थ होता है, अपना मालिक। लेकिन मूछित लोगों को कितना ही प्यारा शब्द दो, उसमें से गड़बड़ कर लेंगे। स्वामी लोग समझने लगे कि हम दूसरों के मालिक। नाम तो दिया था अपने मालिक के लिए, लेकिन स्वामी समझने लगे, हम दूसरों के मालिक। हिंदू स्वामी अभी भी वैसा ही समझता है, कि और सबका काम यही है कि चरण छुओ। जैन-मुनि भी वैसा ही समझता है, और सबका काम यही है कि आओ, सेवा करो। अपनी मालकियत की तो बात भूल गयी, दूसरों की मालकियत, दूसरों पर कब्जा, दूसरों के ऊपर होने का भाव प्रगाढ़ हो गया। बुद्ध ने वह शब्द बदल दिया। बुद्ध ने नया शब्द गढ़ा-भिक्षु। ठीक उलटा शब्द। कहां स्वामी कहां भिक्षु ! ठीक दूसरी तरफ बात को बदल दिया। बुद्ध ने कहा कि नहीं, यह शब्द खतरनाक हो गया है। शब्द के अर्थ तो ठीक थे, लेकिन गलत लोगों के हाथ में ठीक शब्द भी पड़ जाएं तो खराब हो जाते हैं। गलत पात्र में अमृत भी पड़ जाए तो जहर हो जाता है। . तो बुद्ध ने भिक्षु शब्द चुना। बुद्ध ने कहा कि तुम यही खयाल रखना कि तुम भिखारी से ज्यादा नहीं हो। और तुम मांगकर ही जीना। ताकि प्रतिदिन तुम्हें याद आती रहे कि अहंकार को बसाने की कोई गुंजाइश नहीं है। भिखारी को क्या अहंकार की गुंजाइश! मांगकर जो खाए, कोई दे दे तो ले, कोई न दे तो हट जाए द्वार से-और अधिक द्वारों पर तो खबर यही मिले कि आगे जाओ। बुद्ध के जो भिक्षु थे, साधारण घरों से न आए थे। क्षत्रिय घरों से आए थे, राजघरों से आए थे, अनेक तो उनमें राजाओं के बेटे थे, उनको भिखारी बना दिया। और उनको कहा कि यह प्रतिपल तुम्हें याद दिलाएगा, यह तुम्हारी साधना है। द्वार-द्वार तुम जाओगे, द्वार-द्वार दुतकारे जाओगे, कोई देगा दो रोटी, कोई न भी देगा। जो दे, उसे भी धन्यवाद देना है; जो न दे, उसे भी धन्यवाद देना है। क्योंकि 15
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy