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________________ अकेला होना नियति है का भी उपयोग कर लिया और अधिक लोग तो जीवन का भी उपयोग नहीं कर पाते हैं। मूर्छित हो तो जीवन भी असार है, जाग्रत हो तो मृत्यु भी असार नहीं है। और यह सब घट गया केवल सात दिनों में। तो ऐसा मत सोचना कि वर्षों मेहनत करें तब घटता है। और ऐसा भी मत सोचना की सात दिन में ही घट जाएगा। समय से इसका कोई संबंध नहीं है। त्वरा, तेजी, सघनता की बात है। इंटेंसिटी। त्वरा हो तो एक क्षण में भी घट जाता है, और त्वरा न हो तो जन्मों-जन्मों में भी नहीं घटता है। ___मेरे पास कभी कोई आ जाता है, पूछता है, ध्यान कितने दिन में लगेगा? मैं उससे कहता हूं, तुम पर निर्भर है। ध्यान पर निर्भर नहीं है। ध्यान कोई ऐसी जड़ बात थोड़े ही है कि इतने दिन में लगेगा। ध्यान तो तुम्हारी त्वरा पर निर्भर है। उससे मैं सदा ईसप की एक कहानी कहता हूं। ईसप एक रास्ते से जा रहा है। बूढ़ा हो गया है। और एक युवक रास्ते पर आता है। वह भी उसके साथ हो लेता है। और वह युवक पूछता है कि नगर कितनी दूर है ? मैं कितनी देर में पहुंच जाऊंगा। ईसप जैसे सुनता ही नहीं; जैसे बहरा हो। वह युवक जोर से पूछता है-सोचकर कि बूढ़ा शायद बहरा है-वह जोर से पूछता है कि आपने सुना नहीं, महानुभाव? मैं पूछता हूं, नगर कितनी दूर है ? और हम कितनी देर में पहुंच जाएंगे? फिर भी ईसप ऐसे ही सुनता है जैसे अब भी नहीं सुना। यह देखकर कि यह महाबधिर है, वह युवक तो तेजी से आगे बढ़ जाता है। वह कोई पचास कदम आगे गया है कि ईसप ने चिल्लाया कि रुक भाई, एक घंटा लगेगा। वह युवक बोला, अचानक आप जिंदगी में वापस लौट आए! आप कहां चले गए थे, मैं दो बार पूछा, चिल्लाकर पूछा। उसने कहा कि जब तक तुम्हारी चाल न देख लूं, कैसे कहूं? गांव की दूरी, गांव में कब तक पहुंचोगे, तुम्हारी चाल पर निर्भर है। अब मैंने तुम्हारी चाल देख ली—तेज है चाल—घंटेभर में पहुंच जाओगे। मेरी बात पूछते हो, तो मुझे तो तीन घंटे लगेंगे; बूढ़ा आदमी हूं! समय की बात नहीं है, त्वरा की बात है। और यह सब घट गया केवल सात दिनों में। त्वरा का प्रश्न है, समय का नहीं। समझ का प्रश्न है, समय का नहीं। साधना का प्रश्न है, समय का नहीं। वह अपूर्व घटना कभी तो एक क्षण में घट जाती है और कभी जन्मों-जन्मों भी नहीं घटती है। सब व्यक्ति पर निर्भर है। सब तुम पर निर्भर है। कितनी प्यास, कितना प्रयास, सब प्यास और प्रयास पर निर्भर है। कितना तुम अपने जीवन को दांव पर लगाते हो। उस युवक ने पूरा लगा दिया होगा। अब बचाने को कोई अर्थ भी न था, बचाने में कोई अर्थ भी न था। सात दिन बाद जीवन हाथ से छूट ही जाएगा। उसने पूरा ही दांव पर लगा दिया होगा। हम लगाते भी हैं दांव पर तो बड़ी कंजूसी से लगाते हैं। 261
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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