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एस धम्मो सनंतनो
__काश, कोई होश में मर सके तो पता चलता है कि जो तम्हारे भीतर बसा है. वह तो कभी मरता ही नहीं। देह मरती है, मन मरता है, तुम नहीं मरते। तुम शाश्वत हो, तुम सदा से हो। जो सदा से है, उसी के अंग हो। तुम्हारी मृत्यु हो भी नहीं सकती, कोई उपाय नहीं है।
स्रोतापत्ति-फल को पाकर यह युवक मरा। शास्त्र कहते हैं, धन्यभागी था! क्योंकि मृत्यु के पहले ध्यान की धारा मिल जाए तो और क्या धन्यभाग! अभागे हैं वे, जो जीते तो हैं और ध्यान को कभी नहीं जान पाते। अभागे हैं वे, जो कभी स्रोतापत्ति को उपलब्ध नहीं होते। धन कमा लेते हैं, राज्य बना लेते हैं और भीतर दरिद्र के दरिद्र मर जाते हैं। मौत आती है तो बेहोश हो जाते हैं पीड़ा में, मौत को देख नहीं पाते। जिसने मौत को देख लिया, उसने जीवन के सार को देख लिया, क्योंकि मौत की स्थिति में जीवन की परिपूर्ण सार्थकता प्रगट होती है।
इसे ऐसा समझो, कि जैसे अंधेरी रात में तारे चमकते हैं, दिन में तो नहीं चमकते हैं। दिन में तम आकाश की तरफ देखो, तारों का पता नहीं चलता है। तारे तो वहीं हैं, कहीं गए नहीं हैं—ऐसा मत सोचना कि तारे दिन में कहीं चले जाते हैं, रात फिर आ जाते हैं-तारे तो वहीं हैं, लेकिन दिन में दिखायी नहीं पड़ते, पृष्ठभूमि नहीं है। रोशनी को देखने के लिए अंधेरे की पृष्ठभूमि चाहिए। इसीलिए तो हम काले तख्ने पर सफेद खड़िया से लिखते हैं, ताकि दिखायी पड़ जाए। सफेद दीवाल पर नहीं लिखते; लिखेंगे तो सफेद दीवाल पर भी लिख जाएगा, लेकिन दिखायी न पड़ेगा।
जीवन में जीवन का पता नहीं चलता, मौत की अंधेरी रात जब सब तरफ से घेर लेती है तो जीवन का तारा चमकता है। धन्यभागी हैं जो होश से मरते हैं। क्योंकि मौत की काली पृष्ठभूमि में, मौत के ब्लैकबोर्ड पर उभरकर आ जाता है जीवन, जीवन की किरण बिलकुल प्रगट होकर दिखायी पड़ती है। साफ-साफ दिखायी पड़ता है कि शरीर मरणधर्मा है, मन मरणधर्मा है, मैं नहीं। लेकिन इस मैं में अब कोई मैं-भाव भी नहीं होता। इसमें कोई अस्मिता नहीं होती, कोई अत्ता नहीं होती। इसलिए बुद्ध ने इस अवस्था को अनत्ता कहा है, अनात्मा कहा है। इसमें यह भी भाव नहीं होता कि मैं हूं। सिर्फ होना मात्र होता है। और होना इतना शुद्ध होता है कि उस पर कोई रेखा नहीं खींची जा सकती क्या? कोई सीमा नहीं बनायी जा सकती है, कोई परिभाषा नहीं-अपरिभाष्य।
शास्त्र कहते हैं, सुबह का भूला सांझ को भी घर आ जाए तो भूला हुआ नहीं कहाता है। यह सात दिन पहले घर आ गया। देर से आया, खूब देर करके आया, लेकिन देर से भी कोई आ जाए तो भी आ गया। सुबह का भूला सांझ भी घर आ जाए तो भूला नहीं कहाता। आ तो गए, देर से ही सही! भटककर ही सही, लेकिन
आ तो गए! समय के पूर्व आ गए। ___ उस युवक की मृत्यु एक दर्शन बन गयी, एक साक्षात्कार। उस युवक ने मृत्यु
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