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________________ एस धम्मो सनंतनो हम कभी ध्यान भी करते हैं तो कुनकुने-कुनकुने। कभी प्रार्थना भी करते हैं तो ऐसे ही कर ली। प्राण नहीं रखते। उस पर सारा जीवन निर्भर है, ऐसा भाव नहीं करते। हमारे भाव में सघनता नहीं होती। कर लिया! जैसे कर्तव्य था, कर लिया!' मैंने सुना है, एक धनपति धर्म में जरा भी उत्सुक न था। उसकी पत्नी उत्सुक थी। और वह उसे बार-बार कहती कि कभी तो मंदिर चलो, कभी तो सत्संग करो। वह कहता, कर लेंगे जी! कर लेंगे, अभी बहुत समय पड़ा है, जल्दी क्या है? पत्नी सुनती, चुप रह जाती, उसकी आंखें गीली हो जातीं। क्योंकि रोज सत्संग में वह सुनती थी, समय कहां है! समय कहां पड़ा है! यह गया, जा ही रहा है, पड़ा कहां है, प्रतिपल हाथ से खाली होता जा रहा है। __ और एक-एक बूंद करके सागर रिक्त हो जाता है, तो यह तो छोटी सी जिंदगी है। यह कब चुक जाएगी, पता नहीं! तुम्हें पता ही न पड़ेगा और चुक जाएगी। तुम ऐसे ही बैठे रहोगे और चुक जाएगी। मौत जिस दिन द्वार पर आती है तो सभी लोग चौंकते हैं, क्योंकि वे सोचते ही नहीं थे कि आने वाली है। जब भी मौत द्वार पर आती है तो ऐसा लगता है असमय आ गयी। अभी कहां आना था! . पत्नी रोती थी, लेकिन...। फिर पति बीमार पड़ा। तो पति ने कहा कि जल्दी से वैद्य को बुलाओ, दवा की जरूरत है, मुझे बहुत घबड़ाहट हो रही है। पत्नी ने कहा, छोड़ो जी; बहुत समय पड़ा है, बुला लेंगे! पति ने कहा, तू सुनती है कि नहीं? अभी बुला! उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन जल्दी क्या है ? जब धर्म कभी, तो दवा अभी क्यों? क्योंकि मैं तो सत्संग में सुनती हूं कि धर्म दवा है। जीवन का उपचार है। अगर वैद्य अभी बुलाना है तो सदगुरु को अभी नहीं बुलाना है? तुम तय कर लो। यह जिंदगी हाथ से जाती लगती है तो वैद्य अभी चाहिए और जीवन का सर्वस्व हाथ से जा रहा है तो भी तुम–धर्म अभी नहीं। दवा अभी और धर्म अभी नहीं! हमारे गणित ऐसे हैं। और अगर हम कभी कर भी लेते हैं धर्म के नाम पर कुछ, तो इसी में कर लेते हैं कि शायद कुछ हो, कभी काम पड़ जाए, चलो कर लो। कौन जाने परमात्मा हो, याद कर लो! लेकिन जिसने यह सोचकर याद किया कि कौन जाने परमात्मा हो, याद कर लो, वह याद कर ही न पाएगा। क्योंकि याद ऐसी मुर्दा, मरी-मरी, नपंसक-यदि परमात्मा हो, शायद हो। एक नास्तिक को मैं भलीभांति जानता हूं। बड़ी किताबें लिखी हैं। कभी-कभी मेरे पास आते थे, तो वह कहते थे, और कुछ भी हो, मुझे कोई भरोसा नहीं दिला पाता कि ईश्वर है। कोई तर्क प्रमाणित नहीं होता। किसी तर्क से बात समझ में नहीं पड़ती। फिर अचानक वह बीमार पड़े। हृदय का दौरा पड़ गया, उनके लड़के ने मुझे खबर की कि पिताजी बहुत बीमार हैं, आपकी याद करते हैं। तो मैं भागा गया। कमरे में गया तो वह आंख बंद किए राम-राम जप रहे थे। जब मैंने उनके ओंठ हिलते देखे और राम-राम धीरे-धीरे उनको जपते देखा तो मैं बहुत चौंका। मैंने उनका सिर 262
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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