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अकेला होना नियति है चाहते हो; लेकिन वह तुम्हारा अतीत ही है सजा-बजा। अतीत की लाश को ही तुम नए-नए प्रसाधन कर रहे हो और उसी को तुम भविष्य कहते हो।
विचार या तो अतीत के होते या भविष्य के, विचार वर्तमान में होता ही नहीं। विचार वर्तमान में हो ही नहीं सकता। इस अनूठी बात को खयाल में लेना, क्योंकि इसमें कुंजी छिपी है सारे ध्यान की, समाधि की। वर्तमान में विचार होता ही नहीं। जब भी तुम वर्तमान में होते हो तो विचार की तरंग नहीं हो सकती, या तो विचार की तरंग होगी तो तुम वर्तमान में नहीं होओगे। जैसे इसी क्षण अगर कोई भी विचार तुम्हारे भीतर नहीं उठता, तुम अवाक हो, चुप और सन्नाटे में हो और भीतर एक शून्य है, तो तुम वर्तमान में हो।
वर्तमान का जरा सा भी स्वाद परम आनंद से भर जाता है। और जब भी तुम्हें आनंद की कोई झलक मिलती है, तो वह वर्तमान में होने के कारण ही मिलती है। किस कारण तुम वर्तमान में हो गए, यह दूसरी बात है। कभी-कभी अनायास हो जाते हो वर्तमान में, तो सुख मिलता है। ... ध्यान, योग का इतना ही अर्थ है कि तुम सायास, जान-बूझकर वर्तमान में होने का आयोजन करते हो। तुम अपने को पकड़-पकड़कर वर्तमान में ले आते हो। मन तो भागता है अतीत की तरफ, भविष्य की तरफ। मन तो भगोड़ा है। वह तो यहां नहीं टिकता, और कहीं जाता है, और कहीं सदा, यहां नहीं। तुम उसे पकड़-पकड़ कर वापस ले आते हो। तुम उसे यहां बैठना सिखाते हो। मन को सिखाते हो कि आसन लगा यहां। यहीं रुक, कहीं मत जा।
ऐसे धीरे-धीरे-धीरे मन को भी स्वाद लग जाता है वर्तमान का। वही स्वाद मन की मृत्यु बन जाता है। क्योंकि वर्तमान में मन होता ही नहीं। और जो मन के पार है, वही बुद्धिमान है। जो मन के नीचे है, वह बुद्धिमान नहीं है।
तो बुद्ध ने कहा, बुद्धिमान को भविष्य के सपनों में नहीं उलझना चाहिए। भविष्य में मौत के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। . यह बड़ी अनूठी बात बुद्ध ने कही-भविष्य में मौत के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। वर्तमान तो अभी है, वर्तमान ही जीवन है। जीवन वर्तमान में है, भविष्य में तो सिर्फ मौत होगी। कल सिर्फ मौत है और कुछ भी नहीं।
तुमने खयाल किया, इस देश की भाषाओं में हमने जो शब्द चुने हैं, कल और काल, वे एक ही मूल से आते हैं। काल तो मौत का नाम है, और कल भविष्य का नाम है। एक और अनूठी बात है, हम बीते दिन को भी कल कहते हैं और आने वाले दिन को भी कल कहते हैं। बीता दिन मर चुका, आने वाला दिन मरा हुआ है। बीत गयी जो वह भी मौत थी, आ रही है जो वह भी मौत है, दोनों के मध्य में जैसे तलवार की धार पर कोई खड़ा हो—ऐसा वर्तमान खड़ा है, ऐसा जीवन खड़ा है। इसलिए परमात्मा के मार्ग को लोगों ने खड्ग की धार कहा है। इन दो खड्डों के बीच
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