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________________ एस धम्मो सनंतनो नया ग्रहण कर लिया । भगवान ने उससे कहा – प्रिय, बुद्धिमान को भविष्य के सपनों में नहीं उलझना चाहिए। बुद्धिमान का लक्षण ही यही होता है कि वह भविष्य के सपनों में नहीं उलझता है। भविष्य के सपनों में जो उलझता है उसी को हम बुद्ध कहते हैं । बुद्ध का अर्थ होता है, जो नहीं है, जो अभी है नहीं, उसके संबंध में योजनाएं बना रहा है। बुद्धिमान का अर्थ होता है, जो है उसमें जी रहा है। बुद्धिहीन का अर्थ होता है, जो नहीं है, उसके सिर्फ सपने बना रहा है। बुद्धिहीन सपनों में जीता है, बुद्धिमान सत्य में जीता है । सत्य तो है; और सत्य का कोई भविष्य नहीं है, सत्य तो सिर्फ वर्तमान है- अभी और यहीं है। सत्य का कोई अतीत भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि सत्य कभी था और अब नहीं है, और ऐसा भी नहीं है कि सत्य कभी होगा और अभी नहीं है। सत्य तो बस है। यही तो शाश्वत का अर्थ होता है। सत्य शाश्वत है। एस धम्मो सनंतनो । धर्म शाश्वत है, सनातन है । सदा से है, सदा रहेगा। वर्तमान है सत्य । सत्य में सिर्फ एक ही समय होता है - वर्तमान । भविष्य सपने में है, आदमी की खोपड़ी में है । और अतीत भी स्मृति में है। दुनिया में अधिकतर लोग या तो अतीत में जीते हैं, या भविष्य में। शायद ही कोई कभी जागता है वर्तमान के इस मौजूद क्षण में । तो बुद्ध ने कहा, बुद्धिमान को भविष्य के सपनों में नहीं उलझना चाहिए और न अतीत की स्मृतियों में डूबा रहना चाहिए। क्योंकि जो जा चुका, जा चुका, उसे जाने दो। और जो अभी नहीं आया, नहीं आया, उसको खींच-खींचकर सपने में मत लाओ। जो है, उसमें प्रगाढ़ रूप से जागो। जो है, उसमें जागने का नाम ही ध्यान है। अगर तुम एक क्षण को भी निर्विचार होकर जाग जाओ, तो जो है, उसकी तुम्हें प्रतीति होगी, साक्षात्कार होगा । और जो है, उसी का नाम ईश्वर है । I विचार या तो अतीत के होते या भविष्य के, खयाल किया है तुमने कभी ? अपने विचारों की परख करना, तो या तो विचार अतीत से आता है - किसी ने कभी गाली दी थी, कि किसी ने कभी सम्मान किया था, कि कभी कोई घाव मार गया था, कि कभी कोई अपमान कर गया था, कि कभी कुछ सुखद घटना घटी थी - या तो अतीत से आता है विचार; या भविष्य से आता है, कि जैसा सम्मान अतीत में हुआ था वैसा फिर भविष्य में हो, ज्यादा हो; जो सुख अतीत में जाने, वे और बड़े होकर मिलें, और वर्द्धमान हो जाएं, और जो-जो भूलें अतीत में हुईं, फिर न हों; जो-जो अतीत में दुखद था, वह कभी दुबारा न दोहरे, ऐसी भविष्य की योजना । भविष्य की योजना है क्या ? तुम्हारा अतीत ही फिर-फिर दोहरने की योजना बना रहा है। तुम फिर उसे पुनरुक्त करना चाहते हो । थोड़े अच्छे ढंग से, थोड़ा सजाकर, थोड़े नए वस्त्र पहनाकर; कांटे कम कर देना चाहते हो, फूल बढ़ा देना 254
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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