SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म देखा, सोचा इस पर? चांद पर पहुंचना तकनीक की अदभुत विजय है । गणित की अदभुत विजय है। विज्ञान की अदभुत विजय है । जो आदमी चांद पर पहुंच गया, यह अभी छोटी-छोटी चीजें करने में सफल नहीं हो पाया है। अभी एक ऐसा फाउंटेनपेन भी नहीं बना पाया जो लीकता न हो। और चांद पर पहुंच गए ! छोटी सी बात भी, अभी सर्दी-जुखाम का इलाज नहीं खोज पाए, चांद पर पहुंच गए ! अब ऐसे फाउंटेनपेन को बनाने में उत्सुक भी कौन है जो लीके न ! छोटी-मोटी बात है, इसमें रखा क्या है ! फाउंटेनपेन सदा लीकेंगे । कोई आशा नहीं दिखती कि कभी ऐसे फाउंटेनपेन बनेंगे जो लीकें न। और सर्दी-जुखाम सदा रहेगी, इससे छुटकारे का उपाय नहीं है। क्योंकि चिकित्सक कैंसर में उत्सुक हैं, सर्दी-जुखाम में नहीं। बड़ी चीज अहंकार को चुनौती बनती है। आदमी अपने भीतर नहीं पहुंचा जो निकटतम है और चांद पर पहुंच गया। मंगल पर भी पहुंचेगा, किसी दिन और तारों पर भी पहुंचेगा, बस, अपने को छोड़कर और सब जगह पहुंचेगा । तो बुद्ध असहजवादी नहीं हैं। बुद्ध कहते हैं, सहज पर ध्यान दो । जो सरल है, सुगम है, उसको जीओ। जो सुगम है, वही साधना है । इसको खयाल में लेना । तो बुद्ध ने जीवनचर्या को अत्यंत सुगम बनाने के लिए उपदेश दिया है। छोटे बच्चे की भांति सरल जीओ। साधु होने का अर्थ बहुत कठिन और जटिल हो जाना नहीं, कि सिर के बल खड़े हैं, कि खड़े हैं तो खड़े ही हैं, बैठते नहीं, कि भूखों मर रहे हैं, कि लंबे उपवास कर रहे हैं, कि कांटों की शय्या बिछाकर उस पर लेट गए हैं, कि धूप खड़े हैं, कि शीत में खड़े हैं, कि नग्न खड़े हैं । बुद्ध ने इन सारी बातों पर कहा कि ये सब अहंकार की ही दौड़ हैं। जीवन तो सुगम है, सरल है। सत्य सुगम और सरल होगा। तुम नैसर्गिक बनो और अहंकार के आकर्षणों में मत उलझो। ये सात बातें ध्यान में रहें, फिर आज के सूत्र - प्रथम दृश्य : श्रावस्ती नगर, उन दिनों की प्रसिद्ध राजधानी । कुछ भिक्षु भिक्षाटन करके भगवान के पास वापस लौट रहे थे कि अचानक बादल उठा और वर्षा होने लगी। भिक्षु सामने वाली विनिश्चयशाला (अदालत) में पानी से बचने के लिए गए। उन्होंने वहां जो दृश्य देखा, वह उनकी समझ में ही न आया। कोई न्यायाधीश पक्षपाती था, कोई न्यायाधीश बहरा था - सुनता नहीं था, ऐसा नहीं, कान तो ठीक थे, मगर उसने पहले ही से कुछ मान रखा था, इसलिए सुनता नहीं था, इसलिए बहरा था । और कोई आंखों के रहते ही अंधा था। किसी ने रिश्वत ले ली थी, कोई वादी-प्रतिवादी को सुनते समय झपकी खा रहा था, कोई धन के दबाव में था, कोई पद के, कोई जाति-वंश के, कोई धर्म के । और उन्होंने वहां देखा कि सत्य झूठ 13
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy