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________________ एस धम्मो सनंतनो म्यान में और वापस गुफा के बाहर निकल आया। उस आदमी ने कहा, क्यों भाई, क्या हो गया? दो साल से मेरे पीछे पड़े हो, बमुश्किल तुम मुझे खोज पाए, मैं जंगल-जंगल भागता रहा, आज तुम्हें मिल गया, आज क्या बात हो गयी कि छुरा निकाला हुआ वापस रख लिया? उसने कहा कि मुझे क्रोध आ गया। तुमने थूक दिया, मुझे क्रोध आ गया। मेरे गुरु का उपदेश था, मारो भी अगर किसी को, तो मूर्छा में मत मारना। तो मारने में भी कोई पाप नहीं है। लेकिन तुमने जो थूक दिया, दो साल तक मैंने होश रखा–यह तो सिर्फ एक व्यवस्था की बात थी कि गुरु को मेरे तुमने मारा तो मैं तुम्हें मार रहा था, मेरा इसमें कुछ वैयक्तिक लेना-देना नहीं था लेकिन तुमने थूक क्या दिया मुझ पर, मैं भूल ही गया गुरु को और मेरे मन में भाव उठा कि मार डालूं इस आदमी को, इसने मेरे ऊपर थूका! मैं बीच में आ गया, मूर्छा आ गयी। अहंकार बीच में आ गया, मूर्छा आ गयी। इसलिए अब जाता हूं। अब फिर जब यह मूर्छा हट जाएगी तब सोचूंगा। लेकिन मूर्छा में कुछ किया नहीं जा सकता। बुद्ध ने कहा है, जो तुम मूर्छा में करो, वही पाप; जो तुम जागरूकता में करो, वही पुण्य है। यह पाप और पुण्य की बड़ी नयी व्यवस्था थी। और इसमें व्यक्ति को परम स्वतंत्रता है। कोई दूसरा तय नहीं कर सकता कि क्या पाप है, क्या पुण्य है। तुमको ही तय करना है। बुद्ध ने व्यक्ति को परम गरिमा दी। और सातवीं बात, गौतम बुद्ध असहज के पक्षपाती नहीं, सहज के उपदेष्टा हैं। गौतम बुद्ध कहते हैं, कठिन के ही कारण आकर्षित मत होओ। क्योंकि कठिन में अहंकार का लगाव है। __इसे तुमने देखा कभी? जितनी कठिन बात हो, लोग करने को उसमें उतने ही उत्सुक होते हैं। क्योंकि कठिन बात में अहंकार को रस आता है, मजा आता है-करके दिखा दूं। अब जैसे पूना की पहाड़ी पर कोई चढ़ जाए, तो इसमें कुछ मजा नहीं है, एवरेस्ट पर चढ़ जाऊं तो कुछ बात है। पूना की पहाड़ी पर चढ़कर कौन तुम्हारी फिकर करेगा, तुम वहां लगाए रहो झंडा, खड़े रहो चढ़कर! न अखबार खबर छापेंगे, न कोई वहां तुम्हारा चित्र लेने आएगा। तुम बड़े हैरान होओगे कि फिर यह हिलेरी पर और तेनसिंग पर इतना शोरगुल क्यों मचाया गया! आखिर इन ने भी कौन सी बड़ी बात की थी, जाकर हिमालय पर झंडा गाड़ दिया था, मैंने भी झंडा गाड़ दिया! लेकिन तुम्हारी पहाड़ी छोटी है। इस पर कोई भी चढ़ सकता है। जिस पहाड़ी पर कोई भी चढ़ सकता है, उसमें अहंकार को तृप्ति का उपाय नहीं है। तो बुद्ध ने कहा कि अहंकार अक्सर ही कठिन में और दुर्गम में उत्सुक होता है। इसलिए कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि जो सहज और सुगम है, जो हाथ के पास है, वह चूक जाता है और दूर के तारों पर हम चलते जाते हैं। देखते हैं, आदमी चांद पर पहुंच गया। अभी अपने पर नहीं पहुंचा! तुमने कभी 12
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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