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धर्म तुम हो पकड़ मानवीय है। कानून इतना मूल्यवान नहीं है, जितना मनुष्य मूल्यवान है। और हम कानून बनाते ही इसीलिए हैं कि मनुष्य के काम आए। मनुष्य कानून के काम आने के लिए नहीं है। इसलिए जब जरूरत हो, कानून बदला जा सकता है। जब मनुष्य के हित में हो, ठीक है, जब अहित में हो जाए तो तोड़ा जा सकता है। जो-जो मनुष्य के अहित में हो जाए, तोड़ देना है। कोई कानून शाश्वत नहीं है, सब कानून उपयोग के लिए हैं।
और छठवीं बात, गौतम बुद्ध नियमवादी नहीं हैं, बोधवादी हैं।
अगर बुद्ध से पूछो, क्या अच्छा है, क्या बुरा है, तो बुद्ध उत्तर नहीं देते। बुद्ध यह नहीं कहते कि यह काम बुरा है और यह काम अच्छा है। बुद्ध कहते हैं, जो बोधपूर्वक किया जाए, वह अच्छा; जो बोधहीनता से किया जाए, बुरा।
इस फर्क को खयाल में लेना। बुद्ध यह नहीं कहते कि हर काम हर स्थिति में भला हो सकता है। या कोई काम हर स्थिति में बुरा हो सकता है। कभी कोई बात पुण्य हो सकती है, और कभी कोई बात पाप हो सकती है-वही बात पाप हो सकती है, भिन्न परिस्थिति में वही बात पाप हो सकती है। इसलिए पाप और पुण्य कर्मों के ऊपर लगे हुए लेबिल नहीं हैं। अभी जो तुमने किया, पुण्य है; और सांझ को दोहराओ तो शायद पाप हो जाए। भिन्न परिस्थिति।
तो फिर हमारे पास शाश्वत आधार क्या होगा निर्णय का? बुद्ध ने एक नया आधार दिया। बुद्ध ने आधार दिया-बोध, जागरूकता। इसे खयाल में लेना। जो मनुष्य जागरूकतापूर्वक कर पाए, जो भी जागरूकता में ही किया जा सके, वही पुण्य है। और जो बात केवल मूर्छा में ही की जा सके, वही पाप है। जैसे, तुम पूछो, क्रोध पाप है या पुण्य? तो बुद्ध कहते हैं, अगर तुम क्रोध जागरूकतापूर्वक कर सको, तो पुण्य है। अगर क्रोध तुम मूर्छित होकर ही कर सको, तो पाप है।
अब फर्क समझना। इसका मतलब यह हुआ कि हर क्रोध पाप नहीं होता और हर क्रोध पुण्य नहीं होता। कभी मां जब अपने बेटे पर क्रोध करती है, तो जरूरी नहीं है कि पाप हो। शायद पुण्य भी हो, पुण्य हो सकता है। शायद बिना क्रोध के बेटा भटक जाता। लेकिन इतना ही बुद्ध का कहना है, होशपूर्वक किया जाए। ___ मैंने एक झेन कहानी सुनी है। एक समुराई, एक क्षत्रिय के गुरु को किसी ने मार दिया। और जापान में ऐसी व्यवस्था है, अगर किसी का गुरु मार डाला जाए, तो शिष्य का यह कर्तव्य है कि बदला ले। और जब तक वह मारने वाले को न मार दे, तब तक चैन न ले। ये समुराई तो बड़े भयानक योद्धा होते हैं। गुरु को किसी ने मार डाला, तो उसका जो शिष्य था, वह तो सब कुछ छोड़कर बस इसी में लग गया।
दो साल बाद उसका पीछा करते-करते एक जंगल में, एक गुफा में उसको पकड़ लिया। बस उसकी छाती में छुरा भोंकने को था ही कि उस आदमी ने उस समुराई के ऊपर थूक दिया। जैसे ही उसने थूका, उसने छुरा वापस रख लिया अपनी
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