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एस धम्मो सनंतनो
वह इसीलिए परेशानी हो रही है कि विपस्सना ने एक दीवार खड़ी कर दी उसके प्रेम के झरने में। और वह उसका सहज स्वभाव था। वही था मार्ग उसके लिए परमात्मा तक पहुंचने का।
तो मैं जब बुद्ध पर बोलता हूं, तब तुम्हें सदा सावधान करता हूं कि ठीक सोच लेना, तुम्हें अगर प्रेम बिलकुल न जंचता हो, अगर तुम्हें प्रेम में कुछ रस न आता हो और भक्ति में तुम्हारे भीतर कोई भाव न उठता हो और प्रार्थना तुम्हारे लिए बिलकुल ही व्यर्थ मालूम पड़ती हो, तो बुद्ध के मार्ग पर जाना। ___ अगर तुम्हें प्रार्थना में आंसू बहते हों, हृदय डोल उठता हो, मगन हो उठता हो, मस्ती छा जाती हो, श्रद्धा सरल हो, तो फिर बुद्ध के मार्ग में मत जाना। फिर नारद का मार्ग है, फिर मीरा-कबीर का मार्ग है, चैतन्य का मार्ग है। ___ दुनिया में दो ही मार्ग हैं, क्योंकि आदमी के भीतर दो केंद्र हैं—एक हृदय का
और एक बुद्धि का। बुद्ध का मार्ग बुद्धि का मार्ग है। बुद्धि को निखारो, खालिस करो; इतना खालिस करो कि विचार की धूल हट जाए, सिर्फ खालिस बुद्धिमत्ता रह जाए, तो तुम बुद्ध हो गए। नारद का मार्ग है-अपने हृदय को निखारो और साफ करो; इतना निखारो, इतना साफ करो कि राग न रह जाए, प्रेम ही बचे; मोह न रह जाए, प्रेम ही बचे। शुद्ध प्रार्थना बचे, अकारण, कोई मांग न हो, कोई वासना न हो। __ दोनों का परिणाम एक ही है। विचार न रह जाएं-वासनाएं समाप्त हो जाती हैं; विचार न रह जाएं-राग समाप्त हो जाता है। लेकिन विचार के न रहने पर जो पहला अनुभव होता है ध्यान के पथिक का, वह है शुद्ध चैतन्य का, चित का। प्रेम के पथिक को जो अनुभव होता है पहला, वह है शुद्ध प्रेम का, बेशर्त प्रेम का; सारे अस्तित्व के प्रति प्रेम बहा जाता है, किसी कारण से नहीं, अकारण; जैसे झरने बह रहे सागर की तरफ, ऐसा तुम्हारा हृदय बहता समस्त की तरफ। वासना चली जाती, राग चला जाता, विचार भी चले जाते—प्रेम के गहन क्षण में कैसे विचार!
ध्यान के मार्ग पर पहले ध्यान घटता है, फिर पीछे से प्रेम आता है। और प्रेम के मार्ग पर पहले प्रेम घटता है, पीछे से ध्यान आता है।
प्रेमा को मैंने इसलिए नाम दिया-प्रेमा। उसमें उसको मार्ग का इंगित दिया है। ध्यान की भूल में मत पड़ना। तेरे लिए प्रेम ही ध्यान है। गाओ, गुनगुनाओ, नाचो, डोलो, मस्त बनो; आत्मा की शराब पीओ।
तुम बिछुड़े मिले हजार बार, इस पार कभी उस पार कभी। तुम कभी अश्रु बनकर आंखों से टूट पड़े तुम कभी गीत बनकर सांसों से फूट पड़े .. तुम टूटे जुड़े हजार बार, इस पार कभी उस पार कभी।
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