________________
आचरण बोध की छाया है
__ ये सारी आकांक्षाएं जो तुम फेहरिश्त में ले आए हो, बुद्ध ने कहा, ये सब निर्वाण के लिए बाधा हैं। न केवल तुम्हारे गांव में कोई निर्वाण नहीं चाहता है, बल्कि लोग जो चाहते हैं उसके कारण निर्वाण हो भी नहीं सकता है। निर्वाण का अर्थ है, यह जीवन असार है, ऐसा दिखायी पड़ा। पार के जीवन को खोजने की आकांक्षा पैदा हुई—कुछ और हो, कुछ सारपूर्ण, कुछ अर्थपूर्ण, उसे खोजें।
नहीं, बुद्ध कृपण नहीं हैं। बुद्ध ने पूरे जीवन, कोई चालीस साल, सतत बांटने की कोशिश की है; मगर कोई लेने वाला हो तब न! यहां धन के भिखारी हैं, यहां धर्म का भिखारी कौन! यहां पद के भिखारी हैं, यहां परमात्मा का भिखारी कौन! यहां लोग संसार के आकांक्षी हैं, सत्य का आकांक्षी कौन!
छठवां प्रश्न:
ज्योति से ज्योति का मिलन कैसे हो? कृपा कर बताएं कि मुझे कौन सा मार्ग अपनाना चाहिए?
पूछा है प्रेमा भारती ने।
-नाम ही इसलिए दिया हूं तुझे प्रेमा कि प्रेम तेरे लिए मार्ग है। भक्ति तेरा मार्ग है। बुद्ध के मार्ग से तू न जा सकेगी। बुद्ध का मार्ग ध्यान का मार्ग है। बुद्ध के मार्ग से तेरा मेल न बैठेगा। और ऐसी घटना घटी है।
प्रेमा भारती ने यहां आने के पहले सालभर पहले विपस्सना का प्रयोग किया। विपस्सना बौद्धों का ध्यान है। और तबसे उसका सिरदर्द चल रहा है, सिर भारी है, शरीर टूटा-टूटा है, बेचैनी है, परेशानी है; तब से उसकी चेतना प्रगाढ़ होने के बजाय
और धुंधली हो गयी और धुआं-धुआं हो गया। • विपस्सना का प्रयोग उनके लिए है जिनके लिए ध्यान का मार्ग ठीक पड़ता है। सभी मार्ग सभी के लिए ठीक नहीं हैं। और मार्ग मूलरूप से दो हैं-प्रेम और ध्यान। इसलिए बहुत सजग होकर प्रयोग करने चाहिए। इसलिए सदगुरु की अत्यंत आवश्यकता है, तुम कैसे तय करोगे? ___ अब जिस व्यक्ति ने प्रेमा को विपस्सना का प्रयोग करवा दिया, उसको कुछ भी पता नहीं है कि वह क्या कर रहा है। उसे विपस्सना की प्रक्रिया मालूम होगी, लेकिन वह व्यक्ति सदगुरु नहीं है। नहीं तो रोक देता कि विपस्सना करना ही नहीं। विपस्सना करवाना प्रेमा को, उसे आत्मघात की तरफ ढकेलना है। उसकी धारा थी हृदय की। विपस्सना हृदय के बिलकुल विपरीत है। उसकी धारा थी प्रेम की। विपस्सना प्रेम को सुखा डालती है। और यह सालभर से जो उसे परेशानी हो रही है,
239