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एस धम्मो सनंतनो
से आकर कहा कि महाशय, आप इतना समझाते हैं, इतनी मेहनत करते हैं, इसके बजाय आप लोगों को सीधा निर्वाण क्यों नहीं पहुंचा देते? समझाने-बुझाने में क्या रखा है? और समझाने-बुझाने से कौन समझता है! कोई समझता नहीं दिखायी पड़ रहा है। फिर आपको मिल गया, आप बांट क्यों नहीं देते? अगर आपके पास है, तो देने में अड़चन क्या है?
वह आदमी भी ठीक कह रहा है, ठीक तर्कयुक्त बात कह रहा है, कि अगर है तो दे दो। आपको मिल गया, हमें भी बांट दो। कृपणता क्यों है? कंजूसी क्यों है?
बुद्ध ने कहा, एक काम कर; सांझ उत्तर दूंगा, उसके पहले एक और जरूरी काम है, वह तू कर आ। उसने पूछा, क्या काम है ? बुद्ध ने कहा, तू गांव में जा और हर आदमी से पूछ कि उसकी महत्वाकांक्षा क्या है? क्या चाहता है जीवन में? वह आदमी कछ समझा नहीं कि बात क्या है, लेकिन वह चला गया। सांझ लौटा, फेहरिश्त बनाकर लौटा। छोटा सा तो गांव था, सौ-पचास आदमी रहते होंगे, सबकी फेहरिश्त बना लाया। थका-मांदा आया लंबी फेहरिश्त लेकर।।
बुद्ध ने पूछा कि क्या खोज लाए हो, क्या आविष्कार है ? उस व्यक्ति ने कहा, उनकी आकांक्षाओं की लंबी फेहरिश्त बना लाया हूं। कोई शक्ति के लिए पागल है, कोई पद के लिए, कोई प्रतिष्ठा के लिए, कोई सत्ता के लिए, कोई धन-समृद्धि के लिए, कोई सौंदर्य-स्वास्थ्य के लिए, कोई सुख-सुविधा के लिए, कोई प्रेम के लिए. कोई लंबे आयुष्य, कोई सुंदर रमणियों के लिए, कोई सुंदर पुरुषों के लिए, कोई महल के लिए, कोई राज्य के लिए, इस तरह की उनकी आकांक्षाएं हैं-उसने फेहरिश्त पढ़कर सुना दी।
बुद्ध ने पूछा, किसी ने निर्वाण भी चाहा? किसी ने निर्वाण की भी आकांक्षा प्रगट की? वह आदमी उदास हो गया, उसने कहा कि नहीं प्रभु, कोई भी नहीं, एक भी नहीं। बुद्ध ने पूछा, तूने अपना भी नाम फेहरिश्त में लिखा है या नहीं? उसने कहा, लिखा है। वह आखिरी में उसका भी नाम था। तू क्या चाहता है? वह लंबी उम्र चाहता था।
बुद्ध ने पूछा, कोई भी निर्वाण नहीं चाहता, मैं जबरदस्ती कैसे दे दूं? तू भी नहीं चाहता! और सुबह ही तू पूछने आया था कि निर्वाण आप दे क्यों नहीं देते? कोई चाहे न तो कैसे दिया जा सकता है? निर्वाण कोई जबरदस्ती तो नहीं हो सकता, किसी पर थोपा तो नहीं जा सकता। निर्वाण का अर्थ ही परम स्वतंत्रता है, परम स्वतंत्रता थोपी नहीं जा सकती। ____ यह समझ लेना। किसी आदमी पर परतंत्रता तो थोपी जा सकती है, स्वतंत्रता नहीं थोपी जा सकती। तुम किसी आदमी को कारागृह में डालकर कैदी बना सकते हो, लेकिन किसी को मुक्त नहीं बना सकते। मुक्ति तो बड़ी अंतर्दशा है। कोई बंधा ही रहना चाहे तो तुम क्या करोगे? किसी का बंधनों से मोह हो गया हो तो तुम क्या करोगे? धन, पद, प्रतिष्ठा, इनकी जो आकांक्षाएं हैं, ये तो बंधन हैं।
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