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________________ आचरण बोध की छाया है कारण ही संन्यास का जन्म होता है। इसीलिए तू भागी बार-बार यहां आती है। यह बेचैनी अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन आज से स्पष्ट होनी शुरू होगी। आज से अब मैं तेरा पीछा करूंगा। पहले तू सपने में संन्यास लेगी, फिर असलियत में। अब से सपने आने शुरू होंगे संन्यास के। अब से तू जहां भी देखेगी, गेरुवा रंग दिखायी पड़ेगा। परमात्मा की तुझे अभी खोज नहीं है, ठीक है। परमात्मा की खोज किस को होती है शुरू में? शुरू में तो प्रेम की खोज होती है। फिर प्रेम की खोज ही धीरे-धीरे गहन होते-होते परमात्मा की खोज बन जाती है। प्रेम का सघन रूप ही परमात्मा है। तो मुझसे तेरा प्रेम तो लग गया है, इसलिए भागी चली आती है। अब यह प्रेम तो बढ़ेगा। यह प्रेम तो परमात्मा बनेगा। और अगर तू सजग होकर इसको सहयोग दे तो यह घटना जल्दी घट जाए। अक्सर ऐसा होता है कि लोग इस घटना को बाधा डालते हैं! डरते हैं, भयभीत होते हैं, रुकावट डालते रहते हैं। रुकावट डालो तो भी घटती है, लेकिन फिर समय ज्यादा लगता है। रुकावट न डालो, तो जल्दी घट जाती है। परमात्मा द्वार पर ही खड़ा है, तुम रुकावट भर मत डालो, वह प्रविष्ट हो जाता पांचवां प्रश्नः बुद्धपुरुष प्रत्येक को ही निर्वाण देने में समर्थ क्यों नहीं होते? निर्वाण कोई लेने-देने की बात है। यह कोई वस्तु तो नहीं है कि उठायी और दे दी। यह किसी के दिए थोड़े ही होगा; निर्वाण तो तुम्हारा ही प्रस्फुटन है। तुम्हारा ही कमल खिलेगा तब होगा। तुम चाहोगे और अंतरतम से चाहोगे, त्वरा से चाहोगे, घनीभूत रूप से चाहोगे, तब होगा। बहुत रोओगे, बहुत चीखोगे-चिल्लाओगे, तब होगा। कोई दे दे, यह भेंट नहीं है। और भेट अगर कोई दे दे तो तुम उसका मूल्य भी न समझ पाओगे। मूल्य तो तभी समझ में आता है, जब हम श्रम से उपलब्ध करते हैं। लंबी यात्रा है, पहाड़ की चढ़ाई है। ___ नहीं, बुद्ध इसे तुम्हें दे नहीं सकते। इसलिए नहीं कि बुद्ध कृपण हैं, बुद्ध देना भी चाहें तो नहीं दे सकते। यह निर्वाण का स्वभाव नहीं कि दिया जा सके। समाधि किसी को दी नहीं जा सकती। इस घटना को समझोएक आलोचक बुद्धि के व्यक्ति ने-रहा होगा तुम्हारे जैसा—एक दिन बुद्ध 237
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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