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एस धम्मो सनंतनो से उसे सौंदर्य का पता न चला। पर्दा हटाया और सौंदर्य सामने खड़ा था, साक्षात।
तुम पूछते हो, ‘ध्यान क्या है?'
ध्यान है पर्दा हटाने की कला। और यह पर्दा बाहर नहीं है, यह पर्दा तुम्हारे भीतर पड़ा है, तुम्हारे अंतस्तल पर पड़ा है। ध्यान है पर्दा हटाना। पर्दा बुना है विचारों से। विचार के ताने-बानों से पर्दा बना है। अच्छे विचार, बरे विचार, इनके ताने-बाने से पर्दा बुना है। जैसे-जैसे तुम विचारों के पार झांकने लगो, या विचारों को ठहराने में सफल हो जाओ, या विचारों को हटाने में सफल हो जाओ, वैसे ही ध्यान घट जाएगा। निर्विचार दशा का नाम ध्यान है।
ध्यान का अर्थ है, ऐसी कोई संधि भीतर जब तुम तो हो, जगत तो है और दोनों के बीच में विचार का पर्दा नहीं है। कभी सूरज को ऊगते देखकर, कभी पूरे चांद को देखकर, कभी इन शांत वृक्षों को देखकर, कभी गुलमोहर के फूलों पर ध्यान करते हुए-तुम हो, गुलमोहर है, सजा दुल्हन की तरह, और बीच में कोई विचार नहीं है। इतना भी विचार नहीं कि यह गुलमोहर का वृक्ष है, इतना भी विचार नहीं; कि फूल सुंदर हैं, इतना भी विचार नहीं-शब्द उठ ही नहीं रहे हैं-अवाक, मौन, स्तब्ध तुम रह गए हो, उस घड़ी का नाम ध्यान है।
पहले तो क्षण-क्षण को होगा, कभी-कभी होगा, और जब तुम चाहोगे तब न होगा, जब होगा तब होगा। क्योंकि यह चाह की बात नहीं, चाह में तो विचार आ गया। यह तो कभी-कभी होगा। . इसलिए ध्यान के संबंध में एक बात खयाल से पकड़ लेना, खूब गहरे पकड़ लेना—यह तुम्हारी चाहत से नहीं होता है। यह इतनी बड़ी बात है कि तुम्हारी चाहत से नहीं होती है। यह तो कभी-कभी, अनायास, किसी शांत क्षण में हो जाती है। ___ तो हम करें क्या? ध्यान के लिए हम करें क्या? यही शायद तुमने पूछना चाहा है कि ध्यान क्या है? कैसे करें?
ध्यान के लिए हम इतना ही कर सकते हैं कि अपने को शिथिल करें, दौड़धाप से थोड़ी देर के लिए रुक जाएं, घड़ीभर को चौबीस घंटे में सब आपाधापी छोड़ दें। लेकर तकिया निकल गए, लेट गए लान पर, टिक गए वृक्ष के साथ, आंखें बंद कर लीं; पहुंच गए नदी तट पर, लेट गए रेत में, सुनने लगे नदी की कलकल। मंदिर-मस्जिद जाने को मैं कह ही नहीं रहा हूं, क्योंकि पत्थरों में कहां ध्यान! तुम जीवंत प्रकृति को खोजो। ___ इसलिए बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा, जंगल चले जाओ। वहां प्रकृति नाचती चारों तरफ। चौबीस घंटे वहां रहोगे, कितनी देर तक बचोगे, कभी न कभी-तुम्हारे बावजूद-किसी क्षण में अनायास प्रकृति तुम्हें पकड़ लेगी। एक क्षण को संस्पर्श हो जाए, एक क्षण को द्वार खुल जाएं, एक क्षण को पर्दा हट जाए, तो ध्यान का पहला अनुभव हुआ।
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