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________________ आचरण बोध की छाया है जंगल सूख जाता है, क्योंकि सारे जंगल की जड़ें मन की भूमि में हैं। जीवन से मुक्त हो जाओ। जीवन ही रुग्ण है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, जीवन है। दुख बुद्ध ने जो कहा, वह परम चिकित्सा है। वह आत्यंतिक चिकित्सा है। वह जीवन के रोग से छूटने का विधि-विधान है। वह तुम्हें परमात्मा में ले जाने का उपाय है। उससे आता है मोक्ष । फ्रायड को तो मोक्ष का कुछ पता भी नहीं है । और फ्रायड तुम्हारे जैसा ही मन की उलझनों में पड़ा है, जरा भी भेद नहीं है । सोच-विचार का आदमी है, काफी विश्लेषक है, तार्किक है, लेकिन तुम्हारी जैसी ही झंझटों में पड़ा है। जरा भी भेद नहीं है । जरा सा मौका पड़ जाए तो फ्रायड खुद ही पागल हो जाता है। ऐसे मौके आए, जब छोटी सी बात ने उसे इतना क्रुद्ध कर दिया... एक बार तो वह इतना क्रोधित हो गया कि बेहोश हो गया क्रोध में, तमतमा गया और बेहोश होकर गिर पड़ा। फ्रायड सारी दुनिया को समझा रहा है कि कैसे मन के रोग मिटें, लेकिन मन तो उसका भी बना हुआ है । और मन के रोग मिटते नहीं हैं जब तक मन बना है। स्रोत को ही मिटा दो, तो ही रोग जाते हैं। तीसरा प्रश्न ः ध्यान क्या है ? इस छोटी सी घटना को समझें । चांग चिंग के संबंध में कहा जाता है, वह बड़ा कवि था, बड़ा सौंदर्य- पारखी था। कहते हैं, चीन में उस जैसा सौंदर्य का दार्शनिक नहीं हुआ। उसने जैसे सौंदर्य - शास्त्र पर, एस्थेटिक्स पर बहुमूल्य ग्रंथ लिखे हैं, किसी और ने नहीं लिखे । वह जैसे उन पुराने दिनों का क्रोशे था। बीस साल तक वह ग्रंथों में डूबा रहा। सौंदर्य क्या है, इसकी तलाश करता रहा। एक रात, आधी रात, किताबों में डूबा - डूबा उठा, पर्दा सरकाया, द्वार के बाहर झांका — पूरा. चांद आकाश में था । चिनार के ऊंचे दरख्त जैसे ध्यानस्थ खड़े थे। मंद समीर बहती थी। और समीर पर चढ़कर फूलों की गंध उसके नासापुटों तक आयी । कोई एक पक्षी, जलपक्षी जोर से चीखा, और उस जलपक्षी की चीख में कुछ घटित हुआ — कुछ घट गया। चांग चिंग अपने आपसे ही जैसे बोला- हाउ मिस्टेकन आइ वाज! हाउ मिस्टेकन आइ वाज ! रेज द स्क्रीन एंड सी द वर्ल्ड | कैसी मैं भूल में भरा था! कितनी भूल में था मैं ! पर्दा उठाओ और जगत को देखो ! बीस साल किताबों में 229
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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