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________________ आचरण बोध की छाया है फिर वह बस में सवार हुआ और जो-जो यात्री बैठे थे बस में, सभी को उसने सौ-सौ डालर के नोट दे दिए। घर के पहुंचने के पहले ही पुलिस आ गयी। उसको पुलिस ने पकड़ लिया, उसको पुलिस थाने ले जाया गया। उसको पूछा गया कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? उसने कहा कि नहीं, दिमाग मेरा खराब था। रुपए के पीछे दौड़ रहा था जिंदगी भर; वह पागलपन था, वह मेरी समझ में आ गया। उन्होंने कहा, चुप रहो! .. मनोचिकित्सक बुलाया गया। उस मनोचिकित्सक ने भी कहा कि कुछ गड़बड़ हो गयी, इलेक्ट्रिक शाक देने होंगे। . अब किसके साथ गड़बड़ हो गयी? वह आदमी चिल्ला रहा है कि भई, मुझे माफ करो, ये रुपए मेरे हैं, पहली बात। मैं देना चाहूं तो कौन मुझे रोकने वाला है ? मगर वे लोग कह रहे हैं, आप चुप रहिए, आप तो बोलिए ही मत, हमें जो करना है वह हम करेंगे। उसकी पत्नी को बुलाया। पत्नी ने भी कहा कि कुछ गड़बड़ हो गयी है मालूम होता है। वह अपनी पत्नी से बोला कि तू भी यह कह रही है कि गड़बड़ हो गयी है! मैं बिलकुल भला-चंगा हूं! रुपए मेरे हैं, मैंने कमाए, मैं देना चाहता हूं; मैं तुमसे कहता हूं कि अब तक मैं पागल था! इन कागज के टुकड़ों के लिए मैं जिंदगी अपनी बरबाद किया! आज मुझे यह बात दिखायी पड़ गयी, मैं सब बांट देना चाहता हूं। मुझे छोड़ो, मैं बैंक जाकर और निकाल लाऊं, और बांट देना चाहता हूं। मगर अब कौन उसे छोड़े! उसे इलेक्ट्रिक शाक दिए गए, जब तक वह ठीक न हो गया तब तक उसे छोड़ा न गया अस्पताल से। ठीक का मतलब, जब वह वापस उसी दौड़ में पड़ गया जिसमें सारी दुनिया पड़ी है। जब वह भी कहने लगा कि हां, यह कोई बात पागलपन की रही होगी, नहीं तो कोई धन ऐंसे छोड़ता है, तब उन्होंने समझा कि अब ठीक हुआ। तब वह घर लाया गया। तब भी निगरानी रखी गयी कुछ दिन कि कहीं फिर से सनक न आ जाए उसे। तुम क्या सोचते हो, उसे सनक आयी थी? या हम सब सनकी हैं? अगर उसे सनक आयी थी, तो बुद्ध ने जब महल छोड़ा, वह पागल थे। अगर उसे सनक आयी थी, तो महावीर ने जब राजपाट छोड़ा, तब वह पागल थे। वह तो भाग्य की बात कि उन दिनों इलेक्ट्रिक शाक नहीं था! और भाग्य की बात कि वे पिछड़े हिंदुस्तान में पैदा हुए थे, कहीं अमरीका जैसे विकसित देश में पैदा होते तो पुलिस पकड़ लायी होती अस्पताल! वह तो अच्छा हुआ कि ढाई हजार साल पहले पैदा हुए थे! महावीर नग्न हो गए, वस्त्र छोड़ दिए, निश्चित ही पागल थे! ऐसे कोई वस्त्र छोड़ता है! लेकिन महावीर को जो घटा था, उसकी सोचोगे? महावीर को एक बात साफ दिखायी पड़ गयी कि वस्त्रों से शरीर को ढांकने में लज्जा है किस बात की? आखिर शरीर को ढांककर रखा क्यों जाए? छोटे बच्चे तो नहीं ढंकते। छोटे बच्चे निर्दोष हैं, सरल हैं। जिस दिन महावीर उतने ही सरल हो गए, उन्होंने कहा, अब मैं भी 225
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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