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एस धम्मो सनंतनो
कहते हैं, मन तो रोग ही है, स्वस्थ मन जैसी कोई चीज होती ही नहीं।
किस मन को तुम स्वस्थ मन कहते हो? जो मन भीड़ के साथ तालमेल रखता है उसको तुम स्वस्थ कहते हो, जो भीड़ से तालमेल टूट जाए उसको अस्वस्थ कहते हो। लेकिन अगर भीड़ भी पागल है, तब? और भीड़ पागल है। हिंदू चले जा रहे मुसलमान की मस्जिद जलाने; मुसलमान चले जा रहे हैं हिंदू का मंदिर जलाने; हिंदू मुसलमान को काट रहे, मुसलमान हिंदू को काट रहे, इनको तुम स्वस्थ कहते हो? ये रुग्ण हैं, ये बीमार हैं, ये पागल हैं।
व्यक्तियों के पागलपन तो पकड़ में आ जाते हैं, भीड़ों के पागलपन पकड़ में नहीं आते। और दुनिया में जितना नुकसान भीड़ के पागलपन से हुआ है, उतना व्यक्तियों के पागलपन से नहीं हुआ। व्यक्ति तो बहुत निरीह हैं। कोई पागल ही हो गया और सड़क,पर नंगा होकर घूमने लगा, क्या किसी का बिगाड़ लिया! लेकिन हिटलर पागल हो गया, सारी जर्मन जाति उसके साथ पागल हो गयी, करोड़ों लोग मार डाले, भयंकर हत्या हुई। नेपोलियन पागल है, सिकंदर पागल है, इनके साथ चलने वाले हजारों लोग पागल हैं। हिंदू पागल, सुसलमान पागल, ईसाई पागल।
जब तक तुम किसी दायरे में अपने को बांधते हो तब तक खतरा है; तुमने भीड़ के साथ अपनी ज्यादा दोस्ती बना ली, तुम्हें भीड़ के अनुसार चलना पड़ेगा; भीड़ जो करेगी, उसे ठीक कहना पड़ेगा; भीड़ जो नहीं करेगी, उसे गलत कहना पड़ेगा; तुम अपनी अंतरात्मा की न सुन सकोगे, अंतर्वाणी न सुन सकोगे। तुम्हें लाख लगे कि यह गलत है, लेकिन तुम जिस भीड़ के हिस्से हो अगर कर रही है, तो तुम्हें करना ही होगा। भीड़ तो पागल है। और फ्रायड की मनोचिकित्सा इतना ही काम करती है कि जो आदमी भीड़ से जरा अलग-थलग पड़ गया, उसको पकड़कर भीड़ में ले आती है।
समझो। एक आदमी धन कमा रहा था...मैंने सुनी, यह घटना यथार्थ में घटी। एक आदमी ने खूब धन कमाया। एक दिन वह अपने बैंक से लौट रहा था कोई दस हजार डालर के नोट लेकर—उस पर बहुत था—वह जैसे ही रास्ते पर आया, उसको अचानक खयाल आया, धन में रखा क्या है? बहुत था उसके पास और इतनी जिंदगी उसने ऐसे ही गंवा दी, तो जो भी आदमी पास खड़ा दिखायी पड़ा उसको उसने सौ-सौ डालर के नोट देने शुरू कर दिए, बांटने शुरू कर दिए। जिसको भी उसने सौ डालर का नोट दिया, उसी ने चौंककर देखा कि यह आदमी पागल हो गया?
स्वभावतः, तुम्हें अचानक कोई आदमी आए और एकदम सौ रुपए का नोट पकड़ा दे, कि लीजिए, धन्यवाद! तो तुम क्या समझोगे? तुम यही समझोगे कि यह आदमी पागल हो गया। अरे, लोग दूसरों की जेब से निकाल रहे हैं, जेबें काट रहे हैं, जानें जा रही हैं रुपए के पीछे; और यह आदमी रुपए बांट रहा है! और न केवल एकाध को, ऐरे-गैरे किसी को भी! जो मिला!
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