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आचरण बोध की छाया है
जानते हो कि यह मुस्कुराहट झूठ है, यह बिलकुल झूठ है।
देखा, हवाई जहाज में यात्रा करते हो, एयर होस्टेस दरवाजे पर खड़ी होकर मुस्कुराती है। क्या तुमसे लेना-देना! वह बिलकुल झूठ है। उसमें कुछ भी सार नहीं है। वह है ही नहीं मुस्कुराहट। उस मुस्कुराहट के पीछे कोई नहीं मुस्कुरा रहा है। वह मुस्कुराहट बिलकुल मिथ्या है। ___ मगर उससे भी तुम धोखे में आ जाते हो। राजनेता की मुस्कुराहट से धोखे में
आ जाते हो। दुकान पर सेल्समैन की मुस्कुराहट है, उसके धोखे में आ जाते हो। वह तुम्हें मुस्कुराता है देखकर ऐसे कि धन्यभाग कि आप आए, कि आपको देखने को आंखें तरस गयी थीं! वह तुम्हें फुसला रहा है। अगर तुम गौर से देखोगे तो तुम कई तरह की मुस्कुराहटें पाओगे। तरह-तरह की मुस्कुराहटें। और सब झूठ। और भीतर कुछ और है। भीतर कुछ और बाहर कुछ और, तो पाखंड। ___ जब तुम्हारा अपना ज्ञान न होगा तो यह होने ही वाला है। तुम दो हिस्सों में टूट जाओगे। और जो ऊपर-ऊपर है, उससे कोई तृप्ति नहीं मिलती। और जो भीतर-भीतर है, वह तुम्हें जलाएगा और नर्क में डालेगा। ___इसलिए मैं उस ज्ञान के पक्ष में नहीं, जो उधार। मैं उस आचरण के पक्ष में नहीं, जो इस उधार ज्ञान के आधार पर बनाया जाता है। वह जबर्दस्ती थोपना पड़ता है। मैं तो उस सहज आचरण के पक्ष में हूं जो ठीक बीज से शुरू होता, ध्यान से। फिर दूसरे कदम पर ज्ञान बनता है, तीसरे कदम पर आचरण बन जाता है। ध्यान है आत्मा, ज्ञान है मन, आचरण है शरीर।
तो भीतर से चलो। ठीक आत्मा से चलो।
दूसरा प्रश्नः
बुद्ध और फ्रायड की चिकित्सा-विधियों में मौलिक भेद क्या है?
| ब ह त भेद हैं।
पहला तो भेद यही है कि फ्रायड की जो विधि है, वह चिकित्सा-विधि है, वह थेरेपी है। और बुद्ध की जो विधि है, वह सिर्फ चिकित्सा-विधि नहीं है। फ्रायड जिसका मन बीमार है उसके मन को स्वस्थ करने की चेष्टा में लगा है, ताकि मन फिर काम के योग्य हो जाए; समायोजन मिल जाए, एडजस्टमेंट मिल जाए। बुद्ध मन को मिटाने में लगे हैं। मन के समायोजन के लिए नहीं, मन से समाधि मिल जाए, मन से छुटकारा मिल जाए। बुद्ध तो कहते हैं, मन जब तक है तब तक रोग है। फ्रायड कहता है, मन दो तरह के होते हैं, स्वस्थ मन और रुग्ण मन। और बुद्ध
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