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________________ एस धम्मो सनंतनो लिया है—बात हो गयी। उसे नींबू का अर्थ समझ में आ गया, उसे नींब का स्वाद लग गया। तो तुम्हारी समझ में बात आएगी भी नहीं। और समझने की इसे कोशिश भी मत करना। समझ-समझकर तो तुम नासमझ हो गए हो। इतना समझ लिया है तुमने, बिना अनुभव किए, वही तो तुम पर बोझ हो गया है। वही तुम्हें डुबा रहा है। अब तो तुम अनुभव की तरफ चलो। अब समझ की लीक छोड़ो। अब तो तुम धीरे से प्रयोग करो। तुम यह मत कहो कि मैं परमात्मा को समझना चाहता हूं, आत्मा को समझना चाहता हूं, समाधि को समझना चाहता हूं। अब तो तुम यह पूछो कि समाधि कैसे लगे? मैं समाधि में उतरना चाहता हूं, समझना नहीं। समझते-समझते तो कितनी रातें बीत गयीं, कितना अंधेरा तुम काट आए, कितनी नींद में रहे-जन्म-जन्म तुमने गंवाए समझने में। और समझ कुछ भी न आया। अब तो समझ को विदा दो! अब तो समझ से कहो, नमस्कार! अब हम कुछ और करें, अनुभव करें। अब तो हम धीरे से उतरना शुरू करें। ध्यान अनुभव है। ज्ञान ध्यान के भीतर पैदा होता है। और ज्ञान के साथ चला आता है आचरण। और तब जीवन में एक अपूर्व सौंदर्य होता है। अभी तो ऐसा होगा कि ध्यान तो है नहीं, तो ज्ञान तो हो नहीं सकता-ज्ञान होगा बासा, उधार, किताबी, कागजी। जैसे कोई कागज की नाव बनाकर और समुद्र पार करने निकल जाए, ऐसा होगा। खतरा है, डूबोगे बुरी तरह। कागज की नाव बस नाव जैसी मालम होती है. नाव है नहीं। नाव तो वही है जो तिरा दे पार। कागज की नाव कैसे तिराएगी! किताबों से आया हुआ ज्ञान तो ऐसा ही है जैसे ताश के पत्तों से बनाया घर। घर नाम को ही है, उसमें कोई रह थोड़े ही सकता है! जरा सिर डालोगे अंदर कि सारा भवन गिर जाएगा। जरा सा हवा का झोंका आएगा कि भवन गिर जाएगा। वेद, कुरान, बाइबिल के सहारे तुमने जो भवन बना लिए हैं, उनमें तुम रह न सकोगे, वे रहने योग्य नहीं हैं, वे गिर जाएंगे। __ तो ज्ञान झूठा होगा अगर ध्यान भीतर पैदा नहीं हुआ। और जब ज्ञान झूठा होगा और उस ज्ञान के आधार पर तुम अपने आचरण को चलाने की कोशिश करोगे, तो आचरण पाखंड का होगा। तब तुम जबर्दस्ती कुछ करने की कोशिश करोगे जो तुम्हारे भीतर नहीं हो रहा है। इसलिए भीतर होगा क्रोध, ऊपर से तुम मुस्कुराहट थोप दोगे। फाड़ लोगे ओंठों को और मुस्कुरा दोगे; और भीतर है क्रोध और आग जल रही है। तम जानते न, कितने तरह की मुस्कुराहटें होती हैं। राजनेता की मुस्कुराहट, दुनिया जानती है कि वह सच नहीं होती। वह जब तुम्हारे सामने खड़ा, आ जाता है मतदान के लिए कि वोट मुझे दे देना, तो कैसा मुस्कुराता है खींसे निपोर कर! तुम 222
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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