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________________ एस धम्मो सनंतनो क्यों ढंकूं? लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि अब दुबारा जन्म मत लेना; वे दिन गए, जब तुम नग्न भी हो गए और तुम्हें अस्पताल नहीं पहुंचाया गया ! तब तक फ्रायड पैदा नहीं हुआ था! अगर तुम फ्रायड से पूछो तो फ्रायड यही कहेगा कि महावीर न्यूरोटिक हैं, इनका दिमाग खराब है । फ्रायड ने जीसस के संबंध में कहा ही है कि जीसस का दिमाग खराब है। क्या खराबी है जीसस के दिमाग में ? क्योंकि जीसस कभी भी बैठ जाते पहाड़ पर और आकाश की तरफ सिर उठाकर ईश्वर से बातें करते हैं! यह तो पागल ही हैं। कहां ईश्वर ! कैसा ईश्वर ! फ्रायड की पूरी चेष्टा है कि तुम जब समाज और भीड़ से जरा इधर-उधर पड़ जाओ, समाज के घेरे से भिन्न होने लगो, तो खींचकर तुम्हें घेरे में ला देना। फ्रायड की चिकित्सा समाज की व्यवस्था की सेवा में रत है । फ्रायड की चिकित्सा में क्रांति नहीं है । फ्रायड की चिकित्सा स्थिति-स्थापक है, आर्थोडक्स है। फ्रायड, जो ढांचा समाज का चल रहा है, उसकी ही सेवा कर रहा है, उसी में षड्यंत्र में संयुक्त है। बुद्ध की बात और । वह तो कह यह रहे हैं कि तुम जब तक इस भीड़ के पागलपन से उठोगे न, जब तक तुम एकांत और अकेले में न जाओगे, जब तक तुम अकेले न हो जाओगे, जब तक तुम भीड़ की सारी धूल अपने से झाड़ नहीं दोगे और निर्मल नहीं हो जाओगे, तब तक तुम्हारे जीवन में असली स्वास्थ्य आएगा ही नहीं । बीमार है भीड़, इसके साथ चल - चलकर तुम भी भीड़ में बीमार रहोगे । इसीलिए तो संन्यास का जन्म हुआ । संन्यास का अर्थ समझते हैं ? संन्यास का अर्थ है, भीड़ से मुक्त होने का साहस। संन्यास का अर्थ है, अब मैं अपनी सुनूंगा, अपनी गुनूंगा, अपने ढंग से चलूंगा, चाहे जो परिणाम हों। चाहे जो कीमत चुकानी पड़े। संन्यास का अर्थ है कि आज से मैं छोड़ता हूं वे सारी धारणाएं जो समाज ने मुझे दी थीं, आज से मैं व्यक्ति होने की घोषणा करता हूं। अब से मैं स्वतंत्रता की घोषणा करता हूं। अब से मैं परतंत्र नहीं हूं। इस क्षण के बाद अब मैं अपने से पूछूंगा क्या करने योग्य है, और उसी के अनुसार चलूंगा, फिर चाहे कष्ट उठाने पड़ें और चाहे फांसी लगे । चाहे लोग हंसें, उपहास करें, चाहे लोग पागल समझें, लेकिन अब मैं अपनी सुनूंगा। अब से मैं अपना हुआ, अब से मैंने उधार होना छोड़ा ! अब मैं दूसरों की मानकर, जैसा दूसरे चाहते हैं वैसा ही रहने की चेष्टा में संलग्न नहीं रहूंगा। जिसमें मुझे सुख होगा, जिसमें मुझे शांति होगी, वही मेरी जीवन- दिशा होगी। इस परम क्रांति का नाम संन्यास है। बुद्ध ने जितने लोगों को संन्यास दिया उतना पृथ्वी पर किसी ने कभी नहीं दिया था। हटाया, मुक्त किया भीड़ से । भीड़ का एक सम्मोहन है । और ध्यान रखना, जो 226
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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