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________________ आचरण बोध की छाया है तो मैं ज्ञान पर जोर नहीं देता, मेरा जोर ध्यान पर है। अब ये तीन बातें हो गयीं। आचरण, ज्ञान और ध्यान। आचरण ज्ञान का परिणाम है और ज्ञान ध्यान का परिणाम है। तो शुरू से ही शुरू करो, बीज से ही शुरू करो। बिना बीज बोए वृक्ष की आशा न करो। और वृक्ष ही न होगा, तो फल कैसे लगेंगे? आचरण तो फल, ज्ञान वृक्ष, ध्यान बीज। प्रथम से ही शुरू करना होता है। बुद्धिमान प्रथम से ही शुरू करता है। मूढ़ अंतिम की आशाएं करने लगता है और जब अंतिम हाथ नहीं लगता तो पछताता है, रोता है। इस छोटी सी कहानी को ध्यान में लेना एक अल्हड़ युवक रास्ते पर जा रहा था। उसकी दृष्टि एक चमकते हुए पत्थर पर पड़ी। अहा, उसने कहा, रंगीन पत्थर, प्यारा पत्थर! उसने उसे उठा लिया और उसे हाथ में उछालता हुआ और गीत गाता हुआ रास्ते पर चलने लगा। वह पत्थर कोई साधारण पत्थर न था, बहुमूल्य हीरा था। लेकिन उसने तो इतना ही जाना कि रंगीन पत्थर है, घर ले जाएंगे, छोटे बच्चे खेलेंगे। गीत गाता और पत्थर को उछालता जब वह चल रहा था, इसी बीच मिला एक सवार और उस सवार ने कहा, मित्र, मुट्ठी बंद कर लो। युवक ने कहा, क्यों? वह समझा ही नहीं और पत्थर को अब भी उछालता खड़ा रहा। सवार ने फिर कहा, पत्थर नहीं है, हीरा है, बहुमूल्य हीरा है। जो मुट्ठी खुली थी वह अचानक बंद हो गयी, उछालना बंद हो गया। न केवल मुट्ठी बंद हुई, उसने जल्दी से खीसे में रख लिया। उसने कहा, भाई, धन्यवाद! ___ उस सवार ने पूछा, पहले मैंने कहा मुट्ठी बंद कर लो, तुमने न की। और अब तो मैंने मुट्ठी बंद करने को कहा ही न था, मैंने कहा था हीरा है, तुम्हारी मुट्ठी बंद क्यों हो गयी? ___ जब पता चल जाए हीरा है, तो मुट्ठी बंद हो ही जाएगी। हीरे पर मुट्ठी बंद हो जाती है। जरा सा फर्क पड़ा, ज्ञान का फर्क, बोध हुआ कि हीरा है, सब बदल गया। व्यवहार बदल गया। मगर बोध स्वयं होना चाहिए। ____ अब ये बाहर के जो हीरे हैं, इनका बोध तो कोई दूसरा भी दिला दे तो हो जाता है, क्योंकि हीरा तुम्हारे बाहर है और दूसरे के भी बाहर है। जौहरी कह दे कि यह हीरा है, तो तुम्हें भरोसा आ जाता है। लेकिन जिन हीरों की मैं बात कर रहा हूं, वे हीरे भीतर के हैं और कोई जौहरी उनके संबंध में कुछ भी नहीं कह सकता। और कुछ कहे भी तो भी जब तक तुम्हारी अंतर्दृष्टि न हो, तब तक तुम्हें कैसे दिखायी पड़ेगा! वह तो बाहर की आंखें खुली थीं उस युवक की, तो उसने देख लिया कि यह बात ठीक ही कह रहा है, यह रंगीन पत्थर नहीं है, हीरा है। शक तो शायद उसे भी हुआ होगा-शक ही हुआ होगा-चमकती हुई सूरज की किरणों में उस हीरे पर; 219
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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