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एकांत ध्यान की भूमिका है वह सारा जंगल ध्यान से भर गया होगा। जैसे वसंत आता है और फूल खिल जाते हैं, ऐसे ये पांच सौ भिक्षु ध्यान कर रहे थे, इनके ध्यान की तरंगें पैदा हो रही थीं, तब तो तू गया नहीं पागल, जब समय था, ऋतु आयी थी, जब वसंत आया था!
ऐसा मुश्किल से होता है जब पांच सौ लोग एक साथ ध्यान करने किसी जंगल में प्रविष्ट हुए हों। उस जंगल की पूरी हवा बदल जाती है, उस जंगल की तरंगें बदल जाती हैं। उस तरंग में तो कभी-कभी यह भी हो जाता है कि पशु-पक्षी भी ध्यान को उपलब्ध हो जाते हैं, कभी-कभी पौधे भी ध्यान को उपलब्ध हो जाते हैं। अनहोनी घट सकती थी, असंभव संभव हो सकता था, इतना बड़ा प्रवाह था, तब तो तू गया नहीं! जब उद्योग करना था तब उद्योग न किया-युवा है तू, बली है तू, और आलस्य से युक्त है और आलस्य के लिए तर्क खोजता है!
तब तो तूने यह सोचा कि ध्यान इत्यादि होता कहां है! तब तो तूने अपने को बचा लिया, अपने को बंद कर लिया! तब तो तूने अपनी संकल्प-रहितता न देखी! जब संकल्प का क्षण आया था और जब इतने लोग संकल्प कर रहे थे, तब भी तेरे भीतर संकल्प की चोट न पड़ी कि इतने लोग जाते हैं, जरूर कुछ होगा, मैं भी जाऊं। एक प्रयोग तो करके देखू। और बुद्ध कहते हैं, तो झूठ तो न कहते होंगे। ___और तुम ध्यान करो या न करो, इससे बुद्ध को क्या मिलता है! कहते हैं, तो कुछ बात होगी सारं की। और रोज-रोज कहते हैं, सुबह-शाम कहते हैं, वही-वही कहते हैं, तो जरूर कुछ बात होगी। तूने मुझे तो देखा होता! मेरी तरफ तो देखा होता! वह भी तूने न किया। तूने सोचा, ध्यान इत्यादि होता कहां है!
ये चार सौ निन्यानबे लोग जाते थे, इनकी भी बुद्धि पर तूने जरा भरोसा न किया, तूने अपने आलस्य पर भरोसा किया। आलसी पुरुष ध्यान को उपलब्ध नहीं होता। श्रम की क्षमता चाहिए, संकल्प का बल चाहिए। ____ 'योग से प्रज्ञा उत्पन्न होती है और अयोग से प्रज्ञा का क्षय होता है। उत्थान और पतन के इन दो भिन्न मार्गों को जानकर, जिस तरह प्रज्ञा बढ़े उस तरफ अपने को लगाना चाहिए।' . .
योग का अर्थ होता है, तुम्हारी सारी शक्तियां युक्त हो जाएं, संयुक्त हो जाएं, एक हो जाएं। आलसी की सारी शक्तियां बिखरी होती हैं। आलसी का एक हिस्सा एक तरफ जाता है, दूसरा हिस्सा दूसरी तरफ जाता है। आलस्य के त्याग के साथ ही व्यक्ति की शक्तियां इकट्ठी होती हैं, एकजुट होती हैं, केंद्रित होती हैं, एकाग्र होती हैं।
योगा वे जायती भूरि अयोगा भूरि संखयो।
और योग से ही कुछ पाया जाता है—प्रज्ञा जगती है—अयोग से खो जाती है।
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