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एस धम्मो सनंतनो
अयोगी बुद्धिहीन हो जाता है। बुद्धिमत्ता तो जगती तभी है, जब तुम्हारा सारा जीवन इकट्ठा, एकजुट, एक चीज पर आरूढ़ हो जाता है । जब तुम्हारे भीतर एक संकल्प का उदय होता है और सारी वासनाएं और सारी इच्छाएं उसी एक संकल्प के चरणों में समर्पित हो जाती हैं, तब योग पैदा होता है। योग से प्रज्ञा उत्पन्न होती है। अयोग से प्रज्ञा का क्षय होता है। और ये दो ही मार्ग हैं, बुद्ध ने कहा, ठीक से जानकर जिस पर प्रज्ञा बढ़े उस मार्ग पर जाना चाहिए।
और अंतिम सूत्र उन्होंने कहा, 'भिक्षुओ, वन को काटो, वृक्ष को नहीं । वन से भय उत्पन्न होता है। वन और झाड़ी को काटकर निर्वन हो जाओ। '
बड़ा अजीब सूत्र है यह । समझना इसे ।
बुद्ध ने कहा, 'वन को काटो, वृक्ष को नहीं ।'
अक्सर हम वृक्षों को काटते हैं। मेरे पास कोई आता है, वह कहता है, मुझे बहुत आता है, मैं क्रोध से कैसे मुक्त हो जाऊं ? कोई आता है, वह कहता है, 'बहुत लोभी हूं, लोभ से कैसे मुक्त हो जाऊं ? कोई आता है, वह कहता है, मोह बहुत सताता है मुझे, मोह से कैसे मुक्त हो जाऊं ? कोई आता है, वह कहता है, कामवासना बहुत पकड़ती है, इससे कैसे छुटकारा हो ?
मैं
ये एक-एक वृक्ष को काटने में लगे हैं। क्रोध को काट भी लोगे तो कुछ कटेगा नहीं। क्योंकि क्रोध जब कट जाएगा तब तुम पाओगे कि जो ऊर्जा क्रोध में जाती थी, वह लोभ में जाने लगी। लोभ को किसी तरह सम्हालोगे, तो पाओगे कि जो लोभ में जाती थी ऊर्जा, वह काम में जाने लगी। मूल तो वहीं के वहीं हैं । यह पूरा जंगल कटना चाहिए, इसमें एक वृक्ष के काटने से कुछ भी न होगा ।
जंगल को काटने का उपाय ध्यान है। लेकिन लोग एक-एक वृक्ष से उलझते हैं। कोई कहता है, क्रोध से छुटकारा हो जाए तो बस सब ठीक। कोई कहता है, काम से छुटकारा हो जाए तो सब ठीक। ये अलग-अलग वृक्ष हैं। ये सारे वृक्ष एक चीज से ही जुड़े हैं । और वह एक चीज है गैर-ध्यान की अवस्था, अयोग की अवस्था । योग को उपलब्ध व्यक्ति, ध्यान को उपलब्ध व्यक्ति, पूरे जंगल को काट डालता है, इकट्ठा काट डालता है।
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'भिक्षुओ, वन को काटो, वृक्ष को नहीं । '
एक-एक बीमारी से मत उलझो, सारी बीमारियों का जो मूल है, उससे इकट्ठी टक्कर ले लो। नहीं तो तुम बीमारियां बदलते रहोगे, कभी स्वस्थ न हो सकोगे । जो सारी बीमारियों के भीतर मूल कारण है, वह है गैर-ध्यान की अवस्था, बेहोशी की अवस्था, नींद की अवस्था, प्रमाद की अवस्था, मूर्च्छा ।
उस मूर्च्छा को काट डालो, पूरा जंगल कट जाएगा। क्रोध ही नहीं कटेगा, मोह भी कट जाएगा; लोभ ही नहीं कटेगा, काम भी कट जाएगा। सब कट जाएंगे, तुम पूरे जंगल को जला डालो ।
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