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________________ एस धम्मो सनंतनो किसी से अपनी तुलना ही नहीं करते हो, तभी ध्यान घट सकता है। खयाल रखना, ध्यान की यात्रा में भी प्रतिस्पर्धा पकड़ लेती है। जैसे धन की यात्रा में पकड़ती है, किसी ने बड़ा मकान बना लिया तो तुम जले कि मैं भी बड़ा मकान बनाऊं; चाहे तुम्हें जरूरत हो, चाहे न हो । किसी ने शादी में लाख रुपये खर्च किये तो तुम पागल हो गये, कि दो लाख खर्च करने ही पड़ेंगे अपने बेटे की शादी में, इज्जत का सवाल है। चाहे दिवाला निकल जाए, लेकिन ये दो लाख तो करने ही पड़ेंगे। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी कार से उतरी और बेहोश होकर गिर पड़ी। मुल्ला भागा हुआ आया, पंखा किया, पानी छिड़का, होश आया तो पूछा, बात क्या है? तो उसने कहा, इतनी गर्मी ! तो मुल्ला ने कार की तरफ देखा और कहा कि भागवान, तो खिड़की के कांच क्यों नहीं खोले ? उसने कहा, कैसे खोलती ! क्यां मोहल्लेभर में बदनामी करवानी है कि अपने पास गाड़ी है जो एयरकंडीशंड नहीं ! I तो कांच की खिड़कियां बंद रखे है । चाहे प्राण निकल जाएं, मगर मोहल्ले में यह बदनामी तो नहीं होनी चाहिए कि एयरकंडीशंड गाड़ी नहीं है मुल्ला के पास ! ऐसे ही हम जी रहे हैं। ऐसे हम संसार में जीते हैं। यह संसार में तो ठीक ही है, लेकिन ऐसे ही तो हम ध्यान में भी जीने लगते हैं। ऐसे ही हम संन्यास में भी जीने लगते हैं। वहां भी प्रतिस्पर्धा कि कोई मुझसे आगे न निकल जाए, कि कौन पीछे है, कौन आगे है, बड़ी चिंता लगी रहती है। तो फिर ध्यान कभी फलित न होगा। तब बुद्ध ने ये गाथाएं कहीं उट्ठानकालम्हि अनुट्ठहानो युवा बली आलसियं उपेतो। संसन्नसंकप्पमनो कुसीतो पञ्ञाय मग्गं अलसो न विंदति ।। योगा वे जायती भूरि अयोगा भूरि संखयो। एतं द्वेधापथं त्वा भवाय विभवाय च। तथत्तानं निवेसेय्य यथा भूरि पवड्डति ।। वनं छिंदथ मा रुक्खं वनतो जायती भयं । छेत्वा वनञ्च वनथञ्च निब्बना होथ भिक्खवो।। 'जो उद्योग करने के समय उद्योग न करने वाला है, जो युवा और बली होकर भी आलस्य से युक्त होता है, जो संकल्परहित है और दीर्घसूत्री है, वह आलसी पुरुष प्रज्ञा के मार्ग को प्राप्त नहीं करता है।' जब समय हो उद्योग करने का तो उद्योग करना चाहिए। ठीक समय था जब ये पांच सौ भिक्षु जा रहे थे अरण्य को, तू भी गया होता। तब इनकी इतनी बड़ी तरंग थी, उस तरंग में शायद तू भी तिर गया होता। तब एक मौसम आया था ध्यान का, 212
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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