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________________ एकांत ध्यान की भूमिका है कारण ही गलत थे। तब तो जन्मों में भी नहीं हो सकता। इन कारणों के आधार पर तो यह भिक्षु अनंत जन्मों तक भी चेष्टा करे, तो भी इसका दीया जलेगा नहीं, इसका फूल खिलेगा नहीं । वह रातभर ध्यान की कोशिश करता रहा। कभी बैठकर ध्यान किया, कभी खड़े होकर ध्यान किया— बैठकर भी नहीं लगा, खड़े होकर भी नहीं लगा, नींद भी आने लगी, क्रोध भी आने लगा, ईर्ष्या और और घना धुआं उठाने लगी। कभी चलकर ध्यान किया — कि कहीं नींद न आ जाए; सुबह के पहले ध्यान कर ही लेना था । जैसे-जैसे रात बीतने लगी, नींद जोर करने लगी, वैसे-वैसे और पगलाने लगा वह भिक्षु । वह विहार में चलता हुआ चारों तरफ रात के अंधेरे में... । बुद्ध ने दो तरह के ध्यान कहे हैं। एक बैठकर और एक चलकर । चलने वाले ध्यान का नाम है— चंक्रमण । तो बैठकर करे तो नींद लग जाए तो वह चल चलकर ध्यान करने लगा। दौड़ने लगा। क्योंकि चलते-चलते भी नींद के झपके आने लगे और सुबह के पहले पूरा कर लेना है। रातभर का जागरण और जलन की ऐसी दशा और अहंकार का ऐसा आहत-भाव और अहंकार की ऐसी प्रबल चेष्टा कि कल सुबह सिद्ध ही कर देना है कि न केवल मेरा दीया जल गया है, बल्कि और दूसरों से ज्यादा प्रज्वलित है, बड़ी मेरे दीये की लौ है । सुबह होने के पहले ही वह करीब-करीब पागल सी अवस्था में हो गया। एक पत्थर पर गिर पड़ा, जिससे उसके पैर की एक हड्डी टूट गयी। उसकी चीख सुनकर सारे भिक्षु जाग गये। भगवान भी जाग गये। उस भिक्षु पर उन्हें बड़ी दया आयी। उन्होंने उससे कहा — भिक्षु, यह तो ध्यानी होने का मार्ग नहीं। और गलत कारणों से कोई कभी ध्यान को उपलब्ध होता भी नहीं । जाग, होश में आ । ध्यान हो सकता है, लेकिन बीज को ठीक भूमि चाहिए। पत्थरों पर रख देगा बीज को तो ध्यान नहीं होगा। ऐसी जगह बीज को फेंक देगा जहां जल अनुपलब्ध हो, तो बीज अंकुरित नहीं होगा। अहंकार पर ध्यान को अंकुरित करना चाह रहा है ! पत्थर . पर शायद कभी बीज अंकुरित हो जाए, लेकिन अहंकार के पत्थर पर ध्यान कभी अंकुरित नहीं होता। ध्यान की तो मौलिक शर्त है— निरहंकार - भाव; अनत्ता - भाव; अनात्म-भाव । और ईर्ष्या कारण तू ध्यान करना चाहता है, तुझे ध्यान से कोई प्रयोजन ही नहीं है। दूसरों को ध्यान हो गया मुझसे पहले, यह तेरी अड़चन है। जब तक दूसरों पर नजर है, तब तक तो कोई अकेला भी नहीं हो सकता, ध्यान की तो बात ही अलग है। भीड़ खड़ी रहेगी, दूसरा खड़ा रहेगा। प्रतिस्पर्धा जब तक हो, तब तक एकांत कैसे बनेगा? एकांत तो तभी बन सकता है जब दूसरे को हमने बिलकुल विदा कर दिया है, भूल ही गये, दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं है। ध्यान तो ऐसी दशा है जब इस संसार में किसी से कुछ लेना-देना नहीं । न किसी के आगे होना है, न किसी के पीछे होना है, जब तुम इस संसार में 211
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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