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________________ एस धम्मो सनंतनो समर्पित करूंगा। समर्पित जीवन होता है धार्मिक का। खोज का जीवन होता है धार्मिक का। अन्वेषण का अभियान होता है उसके जीवन में। कितने ही उत्तुंग पर्वतों पर बैठा हो सत्य, जाऊंगा। मिट जाऊं मार्ग में भला, लेकिन यहां बैठे-बैठे कोई प्रयोजन नहीं है। वह जो एक भिक्षु था, वह रुक गया। आलसी था, आस्थाहीन भी था। लेकिन उसने अपने मन में सोचा, ध्यान जैसी कोई स्थिति होती नहीं, ये बुद्धपुरुष भी न- मालूम कहां की बातें करते हैं! प्रत्येक रोग अपनी रक्षा करता है, सावधान । हर रोग अपनी रक्षा करता है, हर रोग तरकीबें जुटाता है कि तुम कहीं औषधि न खोज लो । अरण्य में गये भिक्षु उद्योग करते हुए शीघ्र ही ध्यान के अनुभव से मंडित होकर भगवान के चरणों में उपस्थित हुए । उनके व्यक्तित्व और हो गये थे। उनकी मुखाकृतियां और हो गयी थीं। एक सौंदर्य और एक ज्योति उन्हें घेरे हुए थी। अंधा भी देख ले, बहरा भी सुन ले, जो नहीं समझता वह भी पहचान ले, ऐसी उनकी दशा थी । ध्यानमंडित हो वे वापस लौटे। वे चार सौ निन्यानबे भिक्षु एक नये ज्योतिर्प्रवाह की तरह वापस लौटे। उनकी सुगंध बदल गयी थी। उनके मुखौटे गिर गये थे। उनके झूठ गिर गये थे । उनके विचार विसर्जित हुए थे, वे शांत हुए थे। शून्य का उन्हें स्वाद लगा था, शून्य की तरंग उठी थी। वे नये होकर आये थे, उनका पुनर्जन्म हुआ था । उनकी चाल और थी, ढाल और थी। उनकी सारी शैली बदल गयी थी। जिन्होंने उन्हें पहले जाना था वे शायद पहचान भी न पाते कि ये वही व्यक्ति हैं। सिर्फ रंग-रूप वही रह गया था। उतना ही फर्क हो गया था जैसे कि बुझे दीये में और जले दीये में होता है । बुझा दीया, मिट्टी का दीया, तेल-भरा हो, बाती भी अटकी हो, मगर बुझा है। जला दीया, वही का वही है एक अर्थ में, मिट्टी वही है, तेल वही है, बाती वही है, लेकिन एक अभिनव घटना घट गयी कि ज्योति उतर आयी है । ये आत्मवान होकर लौटे थे। ध्यान का दीया जलता है तो मनुष्य के जीवन में जो क्रांति घटती है, वैसी और कोई क्रांति नहीं है। उन्होंने आकर आज जैसी भगवान की वंदना की वैसी कभी न की थी। वैसी कभी करते भी कैसे! आज पहली बार भगवान के चरणों में झुके। आज झुकने के लिए कुछ कारण था। अब तक तो जो था औपचारिक रहा होगा । झुकना चाहिए, झुकते थे। आज झुकना चाहिए की बात ही न थी, आज तो चाहते भी कि न तो भी रुक सकते थे, क्रांति घटी थी, स्वाद लगा था, अनुभव हुआ था। आज दिखायी पड़ा था बुद्ध का वास्तविक रूप उन्हें । दिखायी ही तब पड़ता है जब कुछ ज्योति तुम्हारे भीतर भी आ जाए। कुछ तुम कृष्णमय हो जाओ तो कृष्ण समझ में 208
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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