________________
एकांत ध्यान की भूमिका है
खोज लेते, है ही नहीं तो खोजें क्या? और चादर तानकर सो रहता है। आलस्य अपनी रक्षा में बड़ा कुशल है। बड़े तर्क खोजता है। बजाय इसके कि हम यह कहें कि मेरी सामर्थ्य नहीं सत्य को जानने की, हम कहते हैं, सत्य है ही नहीं। बजाय इसके कि हम कहें कि मैं जीवन में अमृत को नहीं जान पाया, हम कहते हैं, अमृत होता ही नहीं।
फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा, ईश्वर मर गया है। है ही नहीं।
नास्तिक अक्सर आलस्य के कारण नास्तिक होता है। आस्तिकता उपद्रव मालूम होती है। आस्तिकता का मतलब यह हुआ, ईश्वर को स्वीकार किया तो अब एक चुनौती आ गयी। ईश्वर को माना कि है, तो अब खोजना पड़ेगा। न-मालूम खोज कितना समय ले! कितना कंटकाकीर्ण हो मार्ग! कितने पहाड़ी चढ़ाव हों! पता नहीं कितना श्रम करना पड़े! __ईश्वर को स्वीकार करने में ही तुम्हारे आलस्य की मौत होने लगती है। बजाय आलस्य को मारने के यही उचित है कि कह दो, ईश्वर मर गया। ईश्वर को मारना ज्यादा आसान, आलस्य को मारना ज्यादा कठिन। अपने को मारना ज्यादा कठिन, ईश्वर को मार देना सुगम सी बात है। कह दिया, बात खतम हो गयी!
दुनिया में जो लोग नास्तिक हैं, उनमें से अधिक लोग नास्तिक नहीं हैं, मात्र आलसी हैं। इसका मतलब तुम यह मत समझना कि तुम नास्तिक नहीं हो, आस्तिक हो, तो तुम आलसी नहीं हो। आलस्य बड़ा अदभुत है। यह नास्तिकता में भी शरण खोज लेता है, आस्तिकता में भी। आस्तिक कहता है, हां जी, ईश्वर है। अब और क्या खोजना? हम तो स्वीकार ही करते हैं। हम तो मानते ही हैं कि उसी ने बनाया सब, उसी का खेल है, वही खिलवा रहा है, जब तक खिलवाएगा, खेलेंगे। और आदमी के किये क्या होता है! जब उसकी मर्जी होगी, उसका प्रसाद बरसेगा, तो सब हो जाएगा। वह न बुलाए, तब तक कहीं कोई जाता! अपनी खोज से क्या होगा? उसकी कृपा होगी तब सब होगा। . यह भी आलस्य है।
नास्तिक, ईश्वर नहीं है, ऐसा कहकर अपने आलस्य को बचा लेता है। आस्तिक, ईश्वर है, बिना खोजे, बिना सोचे, बिना चुनौती स्वीकार किये स्वीकार कर लेता है, इस स्वीकार में भी आलस्य है। वह कहता है, है जी, मंदिरों में है, मस्जिदों में है। और कभी-कभी जाकर पूजा भी कर आते हैं, धर्म-उत्सव आता है तो प्रार्थना भी कर लेते हैं, हम तो मानते हैं, आस्तिक हैं। मगर न आस्तिक खोजता, न नास्तिक खोजता। दोनों बेईमान हैं।
धार्मिक आदमी और ही तरह का होता है। धार्मिक आदमी कहता है, मैं खोजूंगा, मैं यात्रा पर निकलूंगा, कितनी ही दूर हो सत्य, लेकिन जाऊंगा। क्योंकि इस जीवन को व्यर्थ चीजों में गंवाने में क्या सार है? इसे मैं सत्य की खोज पर
207