________________
एस धम्मो सनंतनो
ऐसा ही है ध्यान। सम्यक संदर्भ के बिना ध्यान का जन्म नहीं होता।
और तब उन्होंने ये सूत्र उन पांच सौ भिक्षुओं को कहे। ये सूत्र अपूर्व मूल्य के हैं
सब्बे संखारा अनिच्चाति यदा पञाय पस्सति। अथ निब्बिन्दति दुक्खे एस मग्गो विसुद्धिया।। सब्बे संखारा दुक्खाति यदा पञ्जाय पस्सति। अथ निबिन्दति दुक्खे एस मग्गो विसूद्धिया।। सब्बे धम्मा अनत्ताति यदा पचाय पस्सति। अथ निब्बिन्दति दुक्खे एस मग्गो विसुद्धिया।।
यह है मार्ग विशुद्धि का-एस मग्गो विसुद्धिया-और तीन बातें कहीं। ये तीन बुद्ध-धर्म के मूल आधार हैं। इन तीन पर बुद्ध की सारी देशना खड़ी है। इन पर उनका पूरा मंदिर बना है।
पहला
सब्बे संखारा अनिच्चाति।
सब संस्कार अनित्य हैं। जो भी है इस जगत में, क्षणभंगुर है। यहां कुछ भी स्थिर नहीं है। यह पहला सूत्र है, यह पहली आधारशिला।
सब्बे संखारा अनिच्चाति यदा पचाय पस्सति।
ऐसा जिसने प्रज्ञापूर्वक देख लिया कि इस संसार में सभी कुछ क्षणभंगुर है। फिर वह कुछ पकड़ेगा नहीं। फिर पकड़ने को कुछ बचा ही नहीं। जहां पानी के बबूले ही बबूले हैं, वहां पकड़ने को क्या है! जब संसार ही पूरा का पूरा पानी का बबूला है, तो तुम्हारे विचार तो बबूलों की छायाएं हैं समझो, बबूले भी नहीं। संसार बबूला है। एक सुंदर स्त्री द्वार से निकल गयी, बुद्ध कहते हैं, यह सुंदर स्त्री पानी का बबूला है। और इस सुंदर स्त्री का जो प्रतिबिंब तुम्हारे मन में बना, वह विचार है, वह तो बबूले की छाया, वह तो बबूला भी नहीं है। वह तो बबूले का फोटोग्राफ।
सब्बे संखारा अनिच्चाति।
सब अनित्य है। इस भाव में गहरे उतरें। तो बुद्ध ने कहा-यह पहली भूमिका।
200