SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकांत ध्यान की भूमिका है बनकर मुक्त होता है। और साक्षी बनने में कैसा सिर मारना! साक्षी बनने में सिर मारना ही नहीं होता। साक्षी बनने में तो बैठ जाता है आदमी चुपकी मारकर भीतर; विचार आते, जाते-देखता। न पक्ष में सोचता है न विपक्ष में सोचता है। न तो कहता बुरे हैं, न कहता भले हैं। कोई मूल्यांकन नहीं करता, कोई निर्णय नहीं लेता–आएं, जाएं, उदासीन, तटस्थ। न राग, न विराग। आओ तो ठीक, न आओ तो ठीक। न बुलाता है, न धकाता है। ऐसी चित्त की दशा में, जब न विचार कोई बुलाए जाते और न धकाए जाते, धीरे-धीरे विचार तिरोहित हो जाते हैं। सन्नाटा छा जाता है। उस सन्नाटे के छा जाने पर भी साक्षीभाव में बैठा आदमी एकदम दीवाना नहीं हो जाता है कि मिल गया, मिल गया-क्योंकि मिल गया, कि विचार आ गया। जैसे ही कहा, मिल गया, चूक गये। पहुंचते-पहुंचते फिसल गया पैर। पड़ने को था आखिरी मंजिल पर और गिर गये गड्रे में। आखिरी समय तक पीछा करेगा मन अगर तुमने जरा सी भी उसको सुविधा दी। तुमने कहा, मिल गया, कि पा लिया, कि अरे, यही है, बस ये शब्द बन गये कि चूक गये, कि बाधा पड़ गयी। तो विचार के प्रति सिर्फ जागना है, और जागकर जब विचार चला जाए तो शून्य को भी पकड़ नहीं लेना है। शून्य जब आए तो उसके प्रति भी उदासी रखना-सुन लो ठीक से, तुम्हारे जीवन में भी वह घटना कभी न कभी घटेगी, घटनी चाहिए-जब शून्य आए तो एकदम से प्रफुल्लित मत हो जाना, नहीं तो विचार ने फिर दांव मार दिया, फिर पीछे से आ गया, फिर पीछे के दरवाजे से घुस आया। बाहर ही खड़ा था, देख रहा था कि कहीं मौका मिल जाए तो प्रवेश कर जाएं। शून्य आए तो शून्य को भी देखना उसी तरह निष्पक्ष जैसे विचारों को देख रहे थे। कहना–ठीक है, तुम भी आए तो ठीक, जाओ तो ठीक; तुमसे भी मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। शांति भी आए तो शांति को भी ऐसे ही देखना, उदास, नहीं कुछ स्स लेना। तब शांति बढ़ेगी, तब शून्य घना होगा और धीरे-धीरे विचार थक जाएगा, इतना थक जाएगा कि उसमें प्राण न रह जाएंगे कि वह वापस लौट सके। इस दशा का नाम ध्यान है। उन्होंने बहुत सिर मारा, मगर कुछ परिणाम न हुआ। सिर मारने से परिणाम होता भी नहीं। सिर मारने से विक्षिप्त हो सकते हो, विमुक्त नहीं। यह कोई जिद्दा-जिद्द थोड़े ही है, यह कोई लड़ाई-झगड़ा थोड़े ही है, यह कोई युद्ध थोड़े ही है, यहां समझ काम आती है। वे पुनः भगवान के पास आए ताकि ध्यान-सूत्र फिर से समझ लें। भगवान ने उनसे कहा-बीज को सम्यक भूमि चाहिए, अनुकूल ऋतु चाहिए, सूर्य की रोशनी चाहिए, ताजी हवाएं चाहिए, जलवृष्टि चाहिए, तभी बीज अंकुरित होता है। और 199
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy