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________________ एस धम्मो सनंतनो महत्वाकांक्षा है। वह भी अपने जीवन के लिए संघर्ष करता है और टिकता है। उसके भीतर भी कोई प्राण छिपा है, कोई आत्मा है। पशु-पक्षियों को गौर से देखते हैं? उनकी आंख में झांकते हैं? प्रकृति सदा से ध्यान के करीब लाने का एक अपूर्व उपाय रही है। उन पांच सौ भिक्षुओं ने बहुत सिर मारा । गये जंगल, बहुत सिर मारा, मगर कुछ परिणाम न हुआ । जंगल गये होंगे, जंगल गये नहीं पहुंच तो गये होंगे वृक्षों के पास, झरनों के पास, लेकिन अपने ही मन में घिरे रहे होंगे। वे आदमी के मन में ही उलझे रहे होंगे। बात समझे नहीं । जंगल जाने से ही थोड़े कुछ हो जाएगा। जंगल के प्रति संवेदनशील होना चाहिए । जंगल जाने का अर्थ है, आदमी और आदमी की सभ्यता पीछे छोड़ जानी चाहिए । अगर उस सभ्यता को तुम अपने मन में ले गये- जिनका नाम संस्कार है— अगर उन संस्कारों को तुम अपने साथ ले गये, तो तुम वहां भी उन्हीं संस्कारों में घिरे बैठे रहोगे। तो ऊपर से तो दिखायी पड़ता है कि तुम जंगल आ गये, लेकिन भीतर से तुम कहीं भी आए न कहीं गये । तुम वहीं के वहीं हो, जहां थे। उन्होंने बहुत सिर मारा, मगर परिणाम कुछ न हुआ। और शायद बुद्ध की बात सुनकर वे लोभ में पड़ गये। ध्यान की महिमा सुनी होगी, ध्यान का गुणगान सुना होगा, ध्यान का अपूर्व आनंद सुना होगा, सच्चिदानंद की बातें सुनी होंगी, समाधि के सुख का बुद्ध का वचन मन में लोभ को जगाया होगा। मन में वासना उठी होगी कि ऐसी समाधि हमें भी मिले। गये थे, लेकिन बिना समझे चले गये। गये थे, लेकिन ठीक से समझकर न गये कि ध्यान कैसी परिस्थिति में पैदा होता है, कैसी मनःस्थिति में पैदा होता है। तो बहुत सिर मारा - सिर मारने क्या होगा ! सिर मारने से ध्यान होता होता तो बड़ी आसान बात हो जाती। समझ चाहिए, सिर मारने से कुछ भी नहीं होता । और समझ न हो तो सिर मारने से और उलझन बढ़ सकती है। समझ हो तो सूत्र बड़े सरल हैं, सहज हैं। फिर सिर मारने में उन्होंने किया क्या होगा ? लड़े होंगे विचारों से। सिर मारने का मतलब साफ है, लड़े होंगे विचारों से। बुद्ध ने कहा, निर्विचार चैतन्य; तो विचारों को हटाने की कोशिश की होगी, मारामारी की होगी विचारों के साथ। और जब तुम विचारों से लड़ोगे तो तुम उनको कभी न हटा पाओगे । विचार लड़ने से कभी हटते ही नहीं, बढ़ते हैं, और बढ़ते हैं। किसी एक विचार से लड़कर देखो, वह तुम्हारा पीछा करने लगेगा। जितना तुम उसे हटाओगे, उतना वह तुम्हारे संग-साथ होने लगेगा। उछल-उछलकर तुम्हारे बगल में चलेगा, आगे-पीछे होगा; तुम उसे हटाओ, तुम्हारे हटाने से नहीं हटेगा । तुम्हारे हटाने की चेष्टा से उसको और बल मिलेगा । नहीं, विचारों से लड़कर कोई विचारों से मुक्त नहीं होता, विचारों के प्रति साक्षी 198
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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