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एस धम्मो सनंतनो
निर्विचार होती है। मगर समाधि में भीतर का आदमी जागा होता है।
ऐसा समझो कि एक आदमी को क्लोरोफार्म दे दिया और उसको स्ट्रेचर पर रखकर ले आए और इस बगीचे में घुमाया। जरूर उसके नासापुट फूलों की गंध से परिचित होंगे, लेकिन उसे होश नहीं। ठंडी हवाएं उसके मुख को छुएंगी, शीतलता उसके आसपास बहेगी, लेकिन उसे पता नहीं। पक्षी गीत गाएंगे, लेकिन उसे पता नहीं; सुंदर फूल खिलेंगे, लेकिन उसे पता नहीं। फिर तुम उसे बगीचे में घुमाकर ले गये, जब उसे होश आएगा तो वह कुछ भी न कह सकेगा कहां गया था । गया तो था बगीचे में, लेकिन वह खुद कुछ भी न कह सकेगा। वह होश में नहीं था, बगीचे तो गया था, लेकिन होश में नहीं था ।
फिर उसी आदमी को होश में लाओ - बगीचा वही है, पक्षी वही हैं, उनकी गुनगुनाहट वही है, गंध वही है, हवाएं वही हैं, लेकिन अब यह आदमी जागा हुआ है।
सुषुप्ति में हम रोज ही उस बगीचे में जाते हैं जिसका नाम परमात्मा है, लेकिन हम जाते हैं बेहोश – क्लोरोफार्म की दशा में। रोज-रोज हम उसके पास पहुंचते हैं। इसीलिए जिस दिन तुम ठीक से नहीं सो पाते, उस दिन बड़ी बेचैनी लगती है। उस दिन परमात्मा से संबंध न हो पाया। मूर्च्छित ही सही, लेकिन अपने घर लौट जाते हो गहरी नींद में – ऊर्जा मिलती, जीवन मिलता, ताजगी मिलती। जिस दिन गहरी नींद आ गयी, उस दिन सुबह तुम उठकर अपने को ताजा पाते हो, नया जीवन पाते हो। जिस दिन गहरी नींद न आयी, उस दिन तुम थके-मांदे होते हो सुबह, अपने मूलस्रोत से संबंध न जुड़ा।
सुषुप्ति में भी संबंध जुड़ता है, लेकिन संबंध मूर्च्छा का है । समाधि में संबंध जुड़ता है होशपूर्वक, जागे हुए तुम परमात्मा में प्रवेश करते हो, जागे हुए लौटते हो। और अगर जागकर गये और जागकर लौटे, तो फिर लौटते ही कहां! फिर तो वहीं स्थित हो जाते हो। फिर आना-जाना सब चलता रहता है और तुम बने वहीं रहते हो, वहीं, ठीक अपने अंतस्तल के केंद्र पर ।
निर्विचार चैतन्य ध्यान का अर्थ है ।
पांच सौ भिक्षु भगवान का आवाहन सुन ध्यान को तत्पर हुए। भगवान ने उन्हें अरण्यवास में भेजा। एकांत ध्यान की भूमिका है।
ध्यान के प्राथमिक चरण में एकांत गहरा साथ देता है। एकांत का इतना ही अर्थ नहीं है कि तुम अकेले होओ। एकांत का यही अर्थ है कि तुम्हारे भीतर भीड़ न हो । तो बाहर की भीड़ भी अगर छोड़ दो तो थोड़ा सहयोग मिलता है, लेकिन थोड़ा। उस पर ही निर्भर मत हो जाना। क्योंकि कोई जंगल में भी बैठकर औरों का विचार कर सकता है। पहाड़ की गुफा में बैठकर भी घर की सोच सकता है, दुकान की सोच सकता है— सोचने पर कोई नियंत्रण नहीं है । तो भीड़ तो फिर भीतर बनी रहेगी। न
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