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________________ एकांत ध्यान की भूमिका है है, उनकी तंद्रा एक जैसी है। तुम सब यहां सो जाओ आज रात, तो जब तक जागे हो तब तक थोड़ा-बहुत शायद भेद भी हो, सोते ही तो सब भेद मिट जाएंगे। एक सी निद्रा सब पर छा जाएगी। फिर कोई आकर अलग-अलग चेहरों का निरीक्षण करने लगे, तो एक ही तो स्वाद पाएगा, निद्रा का। कितना ही खोजबीन करे-स्त्रियां सोयी होंगी, पुरुष सोए होंगे; बच्चे सोए होंगे, बूढ़े सोए होंगे; स्वस्थ सोया होगा, अस्वस्थ सोया होगा; कुरूप और सुंदर सोए होंगे, गरीब और धनी सोए होंगे, संसारी और संन्यासी सोए होंगे लेकिन नींद एक सी होगी। नींद का स्वाद एक सा है। बेहोशी नींद का स्वाद है। __ ऐसी ही घटना परम जागरण में भी घटती है। जो भी जागे, उनका स्वाद एक है। निश्चित ही उनके शब्द अलग हैं—कृष्ण संस्कृत में बोले, बुद्ध पाली में बोले, महावीर प्राकृत में बोले, जीसस अरेमैक में बोले, मोहम्मद अरबी में बोले, भाषाओं के भेद हैं; अलग-अलग घाट, अलग-अलग रंग-ढंग की प्यालियां, अलग-अलग देश, अलग-अलग काल में बने हुए पात्र हैं, लेकिन स्वाद एक है। और जो इस स्वाद को पहचान लेता है, वही धार्मिक है। फिर वह हिंदू नहीं रह जाता, मुसलमान नहीं रह जाता, ईसाई नहीं रह जाता, सिर्फ धार्मिक रह जाता है। और धार्मिक होना परम स्वतंत्रता है। तब फिर कहीं से भी खबर आती है, वह पहचान लेता है कि वह संदेश भगवान का ही है। ___ ध्यान का अर्थ है-निर्विचार चैतन्य। थाटलेस कांशसनेस। निर्विचार चैतन्य को खयाल में लो। दो बातें हैं; एक तो निर्विचार, कंटेंटलेस, कोई विषय-वस्तु न रह जाए चेतना में। कोई चीज बचे न जिसके संबंध में तुम सोच रहे हो, कोई सोच-विचार न बचे। जैसे कि दीया जले, लेकिन दीये के आसपास कोई भी चीज न हो जिस पर प्रकाश पड़े। ऐसी चैतन्य की दशा हो कि आसपास कुछ भी न हो जिस पर चेतना पड़े, जिसके प्रति तुम चेतन होओ; कुछ भी चेतन होने को न बचे, सिर्फ चेतना बचे, शुद्ध चेतना बचे। तो पहली तो बात है, विचार शांत हो जाएं, शून्य हो जाएं, विदा हो जाएं। आकाश से बदलियां चली जाएं, कोरा आकाश बचे। और दूसरी बात है, यह आकाश जागा हुआ हो, चैतन्यपूर्ण हो। अक्सर ऐसा नींद में हो जाता है, गहरी निद्रा में विचार तो चले जाते हैं, स्वप्न भी चले जाते हैं; लेकिन साथ ही साथ तुम भी चले जाते हो। इसलिए पतंजलि ने सुषुप्ति को ध्यान के बहुत करीब कहा है, जरा सा भेद बताया है। वह जरा सा भेद बड़ा है, छोटा नहीं। पतंजलि ने कहा है, सुषुप्ति और समाधि एक जैसे हैं, जरा सा भेद है। सुषुप्ति में निद्रा होती है, समाधि में जागरण होता है, इतना सा भेद है; अन्यथा दोनों एक जैसे हैं, क्योंकि दोनों में विचार नहीं होते। सुषुप्ति भी निर्विचार होती है और समाधि भी 193
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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