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एस धम्मो सनंतनो
मैंने कहा। मौन ही सार है। तुम समझे नहीं, चूक गये। तुम्हें भ्रांति है कि तुम बुद्धिमान हो। मैं चुप रहा, मेरी चुप्पी से ज्यादा और क्या कहूं? यही सार है सारे अनुभव का। मैं शांत रहा, तुम्हारे पास आंखें होतीं तो तुम देख लेते यह प्रज्वलित शांति, यह जलता हुआ भीतर का दीया। मैं चुप रहा, तुमने ही कहा था कि ज्यादा मत कहना । में तो ज्यादा हो जाएगा। मैंने उतना ही कहा जितना कहना जरूरी था; मैं सिर्फ मौजूद था, लेकिन तुम चूक गये।
शब्द
अध्यापक ने कहा, ठीक है, आप ठीक कहते हैं, इतनी गहरी मेरी समझ नहीं है। एकाध-दो शब्दों का उपयोग करेंगे तो चलेगा, फिर से कहें। तो उसने कुछ बोला नहीं, रेत पर बैठा था, अंगुली से रेत पर लिख दिया – ध्यान | अध्यापक ने कहा, इतने से भी काम नहीं चलेगा, कुछ थोड़ा और कहें। फिर बोलते क्यों नहीं हैं ? रेत पर लिखने की क्या जरूरत है? उस फकीर ने कहा, बोलने से यहां की शांति भंग होगी। ध्यान शब्द तो बोल दूंगा, लेकिन ध्यान की यहां जो अवस्था बनी है वह भंग होगी। लिखने से भंग नहीं होती, इसलिए रेत पर लिख दिया है। उस अध्यापक ने कहा, थोड़ा और कहें, इतने से काम न चलेगा। तो उसने दुबारा ध्यान लिख दिया। अध्यापक ने और जोर मारा तो उसने तीसरी बार ध्यान लिख दिया। अध्यापक तो पगला गया, उसने कहा, आप होश में हैं? आप वही - वही शब्द दोहराएं जा रहे हैं।
झेन फकीर हंसने लगा, उसने कहा, सारे बुद्धों ने बस एक ही शब्द दोहराया है, सारे जीवन एक ही शब्द दोहराया है- कितने ही शब्दों का उपयोग किया हो, लेकिन दोहराया एक ही शब्द है— ध्यान, ध्यान, ध्यान । भाषा बदली हो, शैली बदली हो, कथा बदली हो, प्रसंग बदला हो, लेकिन एक ही बात कही है- ध्यान, ध्यान, ध्यान ।
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सुबह, दोपहर, सांझ, बस एक ही बात समझाते थे – ध्यान | सागर जैसे कहीं से भी चखो खारा है, वैसे ही बुद्धों का भी एक ही स्वाद है – ध्यान |
बुद्धों को भी कहीं से भी 'चखो, ध्यान का ही स्वाद आएगा। फिर बुद्ध चाहे महावीर हों, चाहे मोहम्मद हों, चाहे कृष्ण हों, चाहे क्राइस्ट हों, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। जहां बुद्धत्व हुआ है, वहां से बस एक ही खबर आती है, एक ही निमंत्रण आता है, एक ही बुलावा आता है— ध्यान ।
बुद्ध बार-बार ऐसा कहते थे कि जैसा सागर को कहीं से भी चखो, खारा ही है। इस घाट चखो, उस घाट चखो; दिन में चखो, रात में चखो; चुल्लू से चखो कि प्यालियों में भरकर चखो, सागर खारा ही है। ऐसे ही बुद्धों से दिन में सुनो कि रात, कि इस कोने से आओ कि उस कोने से, कि यह प्रश्न पूछो कि वह, इस बुद्ध से पूछो कि उस बुद्ध से, जो भी जाग गये हैं उनका स्वाद एक ही है — ध्यान ।
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स्वभावतः, जागे हुए का एक ही स्वाद होगा - जागरण । और सोए हुए का एक ही स्वाद होता है – निद्रा । सोए हुए आदमी कितने ही भिन्न हों, उनकी नींद एक जैसी
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