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________________ एकांत ध्यान की भूमिका है तो तुमने दिया ही नहीं। दान का लोभ से कैसे संबंध होगा! दान तो लोभ के विपरीत है। तुमने दिया भी इसीलिए कि पा सको। पंडित-पुरोहित लोगों को समझाते हैं, यहां एक दो, वहां एक लाख गुना मिलेगा। यह दान हुआ! यह तो बड़ा मजेदार सौदा हुआ। बड़ा अदभुत सौदा हुआ, ऐसा सौदा यहां तो होता ही नहीं कि तुम एक दो और एक लाख गुना मिलेगा। यह तो लाटरी हुई! और यह तो बिलकुल पक्का है कि मिलने ही वाला है, और इसीलिए तुमने एक दे भी दिया-एक पैसा दे दिया, एक लाख पैसे मिलेंगे; एक रुपया दे दिया, एक लाख रुपये मिलेंगे। यह तो लोभ से दान निकला। और लोभ से दान कैसे निकल सकता है! __दान तो निकलता है जब चित्त अलोभ में होता है। और भय से नीति नहीं निकलती। नीति तो तभी निकलती है जब चित्त अभय में प्रतिष्ठित होता है। तो बुद्ध न तो भय देते हैं, न लोभ। देशना का अर्थ होता है, सिर्फ निवेदन कर देना, ऐसा है। बस, ऐसा है, वैज्ञानिक ढंग से कह देना। - इसको ठीक से समझो। जैसे वैज्ञानिक अगर तुमसे कहेगा कि आग जलाती है, तो वह यह नहीं कह रहा है कि आग को छुओ मत। वह कहता है, तुम्हारी मौज। छूना हो छुओ। आग जलाती है। वह यह भी नहीं कह रहा है कि आग तुम न छुओगे तो बड़ा पुण्य होगा। वह इतना ही कह रहा है, न छुओगे तो जलने से बच जाओगे। छुओगे तो जल जाओगे। जलना हो तो छू लो, न जलना हो तो मत छुओ। लेकिन जब वैज्ञानिक कहता है, आग जलाती है, तो वह केवल तथ्य की सूचना दे रहा है। वह इतना ही कह रहा है कि यह आग का गुणधर्म है कि वह जलाती है। तुम्हें करना हो, करो; न करना हो, न करो; तुम्हारे लिए कोई आदेश नहीं है। देशना का अर्थ होता है, आदेश-रहित उपदेश। सिर्फ तथ्य का निवेदन। तो बुद्ध निरंतर ही ध्यान के लिए देशना देते थे। सुबह, दोपहर, सांझ, बस एक ही बात समझाते थे-ध्यान, ध्यान, ध्यान। . एक और झेन फकीर के संबंध में मैंने सुना है। एक विश्वविद्यालय का अध्यापक उसे मिलने गया। उस अध्यापक ने कहा, मुझे ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं है, मैं पढ़ा-लिखा आदमी हूं, शास्त्र से परिचित हूं, बौद्ध शास्त्रों का ही अध्ययन किया है, उसी में मैं पारंगत हूं, इसलिए आप मुझे संक्षिप्त भी कहेंगे तो मैं समझ जाऊंगा। इसलिए लंबे प्रवचन की जरूरत नहीं है, आप मुझे सार की बात कह दें। आपने जो पाया है, उसको संक्षिप्त में कह दें। मैं कोई मूढ़ नहीं हूं कि मुझे आप समझाएं। आप बस इशारा कर दें, मैं समझ जाऊंगा। बुद्धिमान को इशारा काफी होता है। ऐसा उसने कहा। __ वह फकीर चुप ही बैठा रहा, कुछ भी न बोला। एक शब्द न बोला। थोड़ी देर चुप्पी रही, फिर उस अध्यापक ने पूछा, आप कुछ कहते नहीं? उस फकीर ने कहा, 191
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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