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________________ एस धम्मो सनंतनो से गुजरो, लेकिन जल तुम्हें छुए नहीं। एक झेन गुरु अपने शिष्यों को कहता था बार-बार, जल से गुजरो और जल तुम्हें छुए नहीं। शिष्य-जैसे शिष्य होते हैं-सोचते थे, यह बात हो नहीं सकती। प्रतीक्षा में थे कि कभी मौका लग जाए और गुरु को नदी में से गुजरते देख लें। ऐसा मौका भी आ गया। तीर्थयात्रा पर गये थे और एक नदी पार करनी पड़ी। तो सारे शिष्य बड़े ध्यान से देख रहे थे कि गुरु के पैर को पानी छूता या नहीं? . पानी तो छुएगा ही। पैर तो पैर हैं, पानी पानी है, कोई पानी किसी के लिए नियम थोड़े ही छोड़ देगा। पानी छुआ तो शिष्यों ने गुरु को घेर लिया, उन्होंने कहा, आप बार-बार कहते हैं जल से निकलना और पानी छुए नहीं। हमने बहुत निकलकर देखा, छूता था, तो हमने सोचा, हमसे नहीं सधता है, आप तो साध लिये होंगे। आप भी निकल रहे हैं और जल छू रहा है! वह गुरु हंसा, उसने कहा, कहां? मुझे जल नहीं छू रहा है। और जिसे छू रहा है, वह मैं नहीं हूं। पता नहीं समझे शिष्य या नहीं समझे! भोजन जब तुम कर रहे हो, तो जो भोजन कर रहा है, वह तुम नहीं हो। वस्त्र जब तुम पहन रहे हो, तो जो वस्त्र पहन रहा है, जिस पर वस्त्र पहनाए जा रहे हैं, वह तुम नहीं हो। जब तुम धनी हो गये, तब तुम धनी नहीं हुए हो; और जब तुम गरीब हो गये, तब तुम गरीब नहीं हुए हो; जब तुम्हें पद पर बिठा दिया है, तो तुम पद पर नहीं बैठे। तुम तो सदा साक्षी हो। तुम तो द्रष्टा मात्र हो। तुम कभी कर्ता बनते ही नहीं। तुम कभी भोक्ता भी नहीं बनते। तुम तो दूर खड़े देखते ही रहते हो। तुमने अपने उस द्रष्टा के तल को कभी छोड़ा नहीं। एक क्षण को तुम वहां से डिगे नहीं हो। वही तुम्हारी भगवत्ता है। जिसको विहार आ गया, वही भगवान हो गया। भगवान जेतवन में विहरते थे। उनकी देशना में निरंतर ही ध्यान के लिए आमंत्रण था। देशना का अर्थ होता है, कहना, समझाना, फुसलाना, लेकिन आदेश न देना। देशना का अर्थ होता है, राजी करना, लेकिन नियंत्रित न करना। देशना का अर्थ होता है, तुम्हारी बात के प्रभाव में, तुम्हारी बात की गंध में कोई चल पड़े, तो ठीक, लेकिन किसी तरह का लोभ न देना, किसी तरह के दंड की बात न करना। क्योंकि जो लोग लोभ के कारण चल पड़ते हैं, वे चलेंगे ही नहीं। जो दंड के कारण चल पड़ते हैं, वे भी नहीं चलेंगे। तुमने अगर चोरी इसलिए नहीं की कि तुम्हें नर्क का भय है, तो तुम यह मत सोचना कि तुम अचोर हो, तुम हो तो चोर ही। चोरी भला न की हो, फिर भी तुम चोर हो। अगर नर्क का भय न होता तो तुम जरूर करते। अगर आज तुम्हें पता चल जाए कि नर्क इत्यादि नहीं होते, तो तुम आज ही करोगे। अगर तुमने कुछ पुण्य किया स्वर्ग के लोभ में, तो तुमने किया ही नहीं। तुमने कुछ दान दिया स्वर्ग के लोभ में, 190
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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