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एस धम्मो सनंतनो
नहीं। जिंदगी के घाव इतने सस्ते हैं भी नहीं कि पछने से, कि बताने से भर जाएं।
उत्तर चाहिए, तो निष्प्रश्न दशा चाहिए। प्रश्न का उत्तर नहीं है, लेकिन अगर तुम निष्प्रश्न हो जाओ तो उत्तर है। प्रश्न का उत्तर चाहिए, तो धीरे-धीरे प्रश्न छोड़ते जाओ, गिराते जाओ, हटाते जाओ। और फिर कौन दूसरा तुम्हें उत्तर दे सकेगा! दूसरे का उत्तर दूसरे का ही होगा। जहां से तुम्हारा प्रश्न उठ रहा है, वहीं, उसी गहराई में तुम्हें उत्तर खोजना होगा।
इसलिए बजाय प्रश्न बांधने के तुम अपने प्रश्न की गहराई में उतरो। उसी में डुबकी लगा जाओ। जाओ अपने अंतस्तल में, जहां से प्रश्न उठ रहा है। और अंततः तुम पाओगे कि प्रश्न के भीतर ही उत्तर छिपा है। अगर हम ठीक से प्रश्न में उतर जाएं तो हम उत्तर तक पहुंच जाएंगे। प्रश्न खोल है, उसी खोल में उत्तर भीतर छिपा है। जैसे बीज की खोल में वृक्ष छिपा होता है, ऐसे प्रश्न की खोल में उत्तर छिपा होता है।
सौभाग्यशाली हो कि ऐसा प्रश्न तुम्हारे भीतर उठता है जो बंध नहीं रहा है। इसका मतलब साफ है कि भीतर जाने की घड़ी आ गयी। पूछ लिए बाहर बहुत प्रश्न
और पा लिए बाहर बहुत उत्तर, अब और घाव मत बनाओ। जिज्ञासा अच्छी है, कुतूहल के मुकाबले, ध्यान रखना, लेकिन मुमुक्षा के मुकाबले कुछ भी नहीं है।
इन तीन शब्दों को ठीक से समझ लेना। कुतूहल कुछ भी पूछता रहता है। छोटे बच्चों जैसा होता है। जैसे छोटा बच्चा चल रहा है तो वह पूछता है, यह झाड़ बड़ा क्यों? यह कुत्ते की पूंछ क्यों ? कि आकाश में सूरज क्यों? वह कुछ भी पूछता रहता है। तो तुम उत्तर न भी दो तो भी कोई फिकर नहीं उसे, वह पूछता ही चला जाता है। उसे कोई मतलब भी नहीं है कि तुमने उत्तर दिया है कि नहीं। तुम उत्तर दो भी तो वह कोई बहुत फिकर नहीं करता तुम्हारे उत्तर की। जब तक तुम उत्तर दे रहे, तब तक वह दूसरा प्रश्न तैयार कर लेता है। तुम्हारा उत्तर सुनता भी नहीं। तुम उत्तर देकर पाते हो कि जैसे उसे कोई रस ही नहीं है उत्तर में, उसे तो पूछने में मजा है। वह पूछने में ही रस ले रहा है। पूछने के लिए पूछ रहा है।
ऐसा कुतूहल बच्चों में ही होता तो भी ठीक था, बूढ़ों में भी होता है। पूछने के लिए पूछते रहते हैं। जीवन को दांव पर लगाने की कोई जरूरत भी नहीं मानते। पूछ लिया, शायद उत्तर मिल जाए, न मिले तो भी चलेगा। कोई संकट नहीं है उनके जीवन में। __ जिज्ञासा कुतूहल से बेहतर है। जिज्ञासा का मतलब होता है, कुछ दांव पर लगा है। कुछ! बिना पूछे बेचैनी रहेगी। न पूछेगे तो प्रश्न मन पर घुमड़ता रहेगा, रात ठीक से सो न सकेंगे, कोई चीज चुभती रहेगी कांटे की तरह, तो जिज्ञासा। जिज्ञासा कुतूहल से बेहतर है। लेकिन मुमुक्षा के मुकाबले कुछ भी नहीं है।
फिर तीसरी बात है—मुमुक्षा। मुमुक्षा का मतलब है, सब दांव पर लग गया है; ऐसा प्रश्न उठा है कि अगर इसका उत्तर न मिला तो जीवन व्यर्थ है। इसका उत्तर
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