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जुहो! जुहो! जुहो! चाहिए ही चाहिए। प्रश्न ऐसा है कि इसी पर सारी दारोमदार है। लेकिन ऐसे प्रश्न का उत्तर बाहर से नहीं मिलता। ऐसे प्रश्न का उत्तर तो भीतर से ही आता है। ___मुमुक्षा का उत्तर तो मोक्ष में है। मुमुक्षा के भीतर मोक्ष छिपा है। इसीलिए तो उसको मुमुक्षा कहते हैं, जिसमें मोक्ष छिपा हो। मुमुक्षा खोल की तरह है, मोक्ष उसके भीतर छिपा है। मुमुक्षा टूट जाए तो मोक्ष प्रगट हो।
तुम सौभाग्यशाली हो कि तुम्हारे भीतर एक ऐसा प्रश्न उठ रहा है, जो तुम पूछना चाहते हो, पूछना चाहते हो, पूछना चाहते हो, लेकिन बंधता नहीं। और जो बंधता है, बंधते ही तुम पाते हो, यह तो कुछ और हो गया, यह तो बात वही न रही जो हम पूछना चाहते थे। ___ तो जरूर तुम्हें कुछ धुंधला-धुंधला स्मरण आ रहा है मुमुक्षा का। तुम्हारे भीतर मुमुक्षत्व पैदा हो रहा है। तुम धन्यभागी हो। इस प्रश्न को पूछने की जरूरत ही नहीं है। तुम निष्प्रश्न हो जाओ, तुम शांत हो जाओ, उत्तर मिलेगा। उत्तर तुम्हारे भीतर से ही उमगेगा। तुम्हारे ही अंतस्तल से आएगा। तुम्हारी परिधि जरा शांत हो जाए, कोलाहल जरा बंद हो जाए, तो तुम्हारे भीतर बैठा गुरु तुम्हें उत्तर दे दे।
कुतूहल वाले के उत्तर देने में कोई सार नहीं है। जिज्ञासा जिसकी होती है उसको उत्तर देने चाहिए, ताकि धीरे-धीरे जिज्ञासा उसे मुमुक्षा तक ले जाए। लेकिन मुमुक्षा वाले का उत्तर नहीं दिया जा सकता।
तुम समझना। तुम पूछ सकते हो, फिर मैं इतने उत्तर क्यों देता हूं? सौ प्रश्न आते हैं, दस के उत्तर देता हूं, नब्बे के नहीं देता; वे कुतूहल वाले प्रश्न होते हैं, उनके मैं उत्तर नहीं देता। जिन दस के उत्तर देता हूं, वे जिज्ञासा के हैं। कभी-कभी उन दस में एक तुम्हारे जैसा प्रश्न आ जाता है, उसका भी उत्तर नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि वह मुमुक्षा का है। __ कुतूहल वाले का उत्तर देना समय खराब करना है, उसे मतलब ही नहीं है, उसने पूछा ही नहीं है। ऐसे ही चलते-चलते! इस तरह के लोग हैं। कभी-कभी बड़ी उम्र के.लोग मिल जाते हैं। ___मैं वर्षों तक सफर करता था मुल्क में—मैं स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने भागा जा रहा हूं, गाड़ी छूटी जा रही है, कोई मेरा हाथ ही पकड़ ले कि जरा रुकिए तो, ईश्वर है? जरा एक क्षण में बता दीजिए। इसको कुछ होश ही नहीं है कि यह क्या पूछ रहा है! कोई संदर्भ होता, कोई समय होता, कोई अनुकूल परिस्थिति होती! और ईश्वर कोई ऐसी बात थोड़े ही है कि मैं कह दूं हां और न, और हो गयी! कि मेरे हां और न कहने से इसका प्रश्न हल हो जाएगा। बूढ़े हैं, लेकिन बचपन नहीं गया। ___ बायजीद अपने गुरु के पास गया तो कहते हैं, बारह साल तक चुप बैठा रहा। बारह साल लंबा वक्त होता है। तब गुरु ने बायजीद की तरफ देखा और कहा कि अब भाई पूछ ही ले। बायजीद चरणों में झुका, उसने कहा कि अब पूछने की जरूरत
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