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जुहो! जुहो! जुहो! करना होगा। उसे तो तुम्हें अपने शून्य से ही अभिव्यक्ति देनी होगी। ___ हां, शायद कभी आंसुओं में प्रगट हो जाए, या तुम्हारे नाच में, या तुम्हारी चुप्पी में, लेकिन बोलकर तो तुम उसे न कह पाओगे। ____ जो तुम पूछ सकते हो, सदा पाओगे पूछकर कि अरे, यह कुछ और पूछ लिया। जो पूछना था वह तो छूट ही गया। वह समाता ही नहीं है। व्यर्थ ही शब्दों में समाता है, सार्थक समाता नहीं। ___लेकिन तुम अड़चन में मत पड़ो, यही अड़चन मेरी भी है। जो तुम पूछना चाहते हो, पूछा नहीं जा सकता; और जो मैं कहना चाहता हूं, कहा नहीं जा सकता-जो मुझे उत्तर देना है, वह भी नहीं कहा जा सकता। न तो असली प्रश्न पूछा जा सकता है, न असली उत्तर दिया जा सकता है। इसलिए तुम यह मत सोचो कि तुम्ही अड़चन में हो। वैसी ही अड़चन मेरी है। वैसी ही अड़चन सदा से रही है। कि जो नहीं पूछा जा सकता, स्वभावतः उसका उत्तर भी नहीं दिया जा सकता। शून्य में ही तुम्हें उसे समझना होगा। शून्य में ही निवेदन करना होगा। और शून्य में ही पीना होगा उत्तर। चुप्पी में ही घटना घटेगी। चुपके-चुपके घटना घटेगी। शब्द बाधा बन जाते हैं। .
तुम कहते हो, 'मैं सदा से चाहता हूं कि कोई प्रश्न पूछं, लेकिन कोई प्रश्न बनता ही नहीं।'
नहीं बनेगा। जितने होशपूर्वक सोचोगे, उतना ही मुश्किल होता जाएगा बनना। और जो बनेंगे, वह तुम पाओगे, ये तो पूछने नहीं थे। यह तो न पूछा तो चल जाएगा। व्यर्थ प्रश्न जल्दी से बंध जाते हैं, जल्दी से बन जाते हैं।
'और जो बनते हैं, वे पूछने जैसे मालूम नहीं होते।'
ठीक हो रहा है, एकदम ठीक हो रहा है। यह शुभ घड़ी है। यह खुजलाहट ही छोड़ो। यह बात ही जाने दो। इससे एक बात साफ है कि तुम्हें स्पष्ट हो रहा है भीतर, मौन में, क्या पूछने योग्य है। तुम उसे शब्द में बांधना चाह रहे हो, हारते जा रहे हो। नहीं बंधेगा। तुम कोरा कागज ही भेज दो। मत लिखो, कुछ मत लिखो। . मैंने सुना है, झेन सदगुरु हुआ, हुई ची। उससे फेंग लिन ने पूछा, मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं; कुछ प्रश्न हैं, क्या मैं पूछं? सदगुरु ने बड़ी अजीब बात कही। उसने कहा, क्यों अपने को घाव पहुंचाना चाहते हो? व्हाय डू यू वांट टु वूड योरसेल्फ? यह भी कोई उत्तर हुआ-क्यों अपने को घाव पहुंचाना चाहते हो? मगर बड़ा महत्वपूर्ण उत्तर हुआ। हर प्रश्न खुजली जैसा है। ज्यादा खुजलाओगे, घाव बन जाता है। खुजली मीठी लगती है, फिर बहुत पीड़ा लाती है।
प्रश्न घाव ही हैं। पूछो, तो फिर उत्तर चाहिए। और उत्तर से कुछ हल नहीं होता। उत्तर से दस नए प्रश्न खड़े होते हैं, फिर दस घाव बनते हैं। फिर पूछो, दस उत्तर मिलेंगे और सौ घाव पैदा हो जाएंगे। हर उत्तर दस नए प्रश्न खड़ा करता है और क्या होता है ? घाव और गहरा होता जाता है। कोई उत्तर किसी प्रश्न के घाव को मिटाता
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