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________________ एस धम्मो सनंतनो चाहते हैं; ये एक ही तरफ इशारा कर रहे हैं, इनके शब्द अलग-अलग हैं। जब मैं चांद की तरफ अंगुली उठाता हूं तो मेरी अंगुली अलग होती है। जब तुम चांद की तरफ अंगुली उठाते हो, तुम्हारी अंगुली अलग होती है। हो सकता है मेरी अंगुली काली है, तुम्हारी गोरी है; हो सकता है मेरी अंगुली कुरूप है, तुम्हारी अंगुली सुंदर है। हो सकता है मेरी अंगुली नंगी है, तुम्हारी अंगुली पर हीरे-जवाहरातों का आभूषण है; लेकिन जिस चांद की तरफ हम इशारा करते हैं, वह चांद तो एक ही है। मगर जिसने चांद न देखा हो, वह अंगुलियों के हिसाब में पड़ जाएगा। शास्त्र पढ़ने में यही खतरा है। तुम अंगुलियों का हिसाब करने लगोगे। पहले चांद देख लो। फिर सभी शास्त्र उसी का गीत गा रहे हैं, उसी की गुनगुनाहट कर रहे हैं। मगर अपना गीत पहले सुनो। भीतर की किताब पहले खोलो। भीतर की किताब की परिपूरक न बन जाए बाहर की किताब। इसलिए मैं बार-बार दोहराता हूं कि शास्त्रों में सार नहीं है। ऐसा न हो कि तुम बाहर की किताब ही खोले बैठे रहो और समझो कि भीतर की किताब खोल ली। यह खतरा है। इतना भर स्मरण रहे और भीतर की किताब पर दृष्टि रहे, फिर कोई खतरा नहीं है। भीतर के पन्ने पढ़ते जाओ, जितने पन्ने भीतर के पढ़ लो, उतने पन्ने तुम गीता, कुरान, बाइबिल के पढ़ लेना। पढ़ना हो तो पढ़ लेना, न पढ़ना हो तो न पढ़ना, कोई अर्थ भी नहीं है, न पढ़ा तो भी चलेगा। जब भीतर का ही पढ़ लिया तो अब प्रयोजन भी क्या है? लेकिन अगर पढ़ना हो तो पढ़ लेना; तो भी चलेगा। तो आनंदित होओगे कि तुमने जो जाना, वही तो कृष्ण ने जाना, वही क्राइस्ट ने जाना, वही जरथुस्त्र ने जाना। ये सब तुम्हारे गवाह हो जाएंगे। चौथा प्रश्नः मैं सदा से चाहता हूं कि कोई प्रश्न पूछं, लेकिन कोई प्रश्न बनता ही नहीं है। और जो बनते हैं, वे पूछने जैसे नहीं मालूम होते हैं। अब मैं क्या करूं? तो पूछने की खुजलाहट छोड़ो। यह खुजली है। पूछना ही क्या! अब बात साफ ही है कि जो तुम पूछना चाहते हो, वह बन नहीं पाता। नहीं बनेगा। कभी नहीं बना है। तुम अपवाद नहीं हो सकते। पूछने योग्य प्रश्न पूछा ही नहीं गया है। पूछने योग्य प्रश्न पूछा ही नहीं जा सकता, क्योंकि वह प्रश्न इतना बड़ा है। वह प्रश्न इतना बड़ा है कि तुम उसे शब्दों में न समा पाओगे। उसे तो तुम्हें मौन आंखों से ही निवेदन 174
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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